उग्रवाद विध्वंसक यन्त्र
या चामुंडा यन्त्र
राष्ट्र रक्षा के लियें सबसे उचित प्रयोगों में सबसे उपर और एकमात्र चंडी हैं , एकमात्र चंडी हैं, और एकमात्र चंडी हैं। चंडी के अलावा और कुछ नहीं ।
चंडी मंत्र का मतलब सिर्फ चंडी हैं और कुछ नहीं । चंडी और दुर्गा में अंतर हैं । क्योकि दोनों के वर्ण भिन्न हैं ।
- बुधवार को इस प्रयोग को शुरू करें ।
- यन्त्र को कार्ड पेपर (मोटे पेपर ) पर पेन से बना लेवें ।
- एक और यन्त्र बना कर अपनी शर्ट की जेब में रख लेवें ।
- वैष्णो देवी की फोटो लगाएं ।
- देवी सिंहवाहिनी की फोटो भी लगाएं ।
- घी का दीप पांच मिनिट जलाए ।
- किसी और देवता का दर्शन मंत्र चित्र से दूर रहें ।
- भारत के सन्दर्भ में मेरे अनुसार चंडी एकमात्र राष्ट्ररक्षक देवी हैं या मंत्र हैं ।
- रविवार तक करें और सोमवार और मंगलवार को छोड़कर वापस करना चाहे तो बुधवार को करें ।
- मंगलवार को यह प्रयोग ना करें ।
- लाल रंग के वस्त्र पहनें ।
- लाल रंग का बल्ब जलाये ।
- कठोर ब्रह्मचर्य रखें ।
- सोमवार मंगल वार को श्वेत वस्त्र पहनें ।
- हरे वस्त्र ना पहनें
- हाथ में कोई हरा रत्न या पन्ना हो तो उसे उतार दे ।
- हरे रंग दूर रहें ।
- वैष्णव इस विश्व में इसका तुरंत परिणाम टीवी पर पांचवें दिन देखें ।
- इस मंत्र से स्त्रियाँ उग्र हो जाती हैं । आप उनसे लड़ें नहीं, घर से कहीं बाहर घूम आयें ।
तीन बार यह बोले (ॐ विश्वदेव्यै:, ॐ:, विश्वदेव्यै ॐ विश्वदेव्यै:, समस्त विश्वे मम ह्रदय,
स्थापय:, स्थापय:, स्थापय: मम शरीरे स्थिर:, स्थिर:, स्थिर:, ॐ विश्वात्मने:, ॐ
विश्वात्मने:, ॐ विश्वात्मने: नमः)
मंत्र
॥ ॐ चंडी:ॐ चंडी:ॐ चंडी:ॐ चंडी:ॐ चंडी:ॐ ॥
रोजाना ११ बार या १०८ बार
मेरा प्रयोग काल नवम्बर २००८ से
आपके सुविधा के लियें ॥ चण्डिकाहृदयस्तोत्रम् ॥ दिया जा रहा हैं। ( इसकी जरुरत नहीं हैं ।)
॥ ॐ नमः चण्डिकायै ॥
अस्य चण्डिका हृदय स्तोत्र महामन्त्रस्य । मार्क्कण्डेय ऋषिः, अनुष्टुप्च्छन्दः, चण्डिका देवता । ह्रां बीजं, ह्रीं शक्तिः, ह्रूं कीलकं, अस्य चण्डिका प्रसाद सिद्ध्यर्थे जपे विनियोगः । ह्रां इत्यादि षडंग न्यासः ।
ब्रह्मोवाच । अथातस्सं प्रवक्ष्यामि विस्तरेण यथातथं । चण्डिका हृदयं गुह्यं शृणुष्वैकाग्रमानसः ।
। ॐ ऐं ह्रीं क्ळीं,
ह्रां, ह्रीं, ह्रूं जय जय चामुण्डे,चण्डिके, त्रिदश, मणिमकुटकोटीर संघट्टित चरणारविन्दे, गायत्री, सावित्री, सरस्वति, महाहिकृताभरणे, भैरवरूप धारिणी, प्रकटित दंष्ट्रोग्रवदने,घोरे, घोराननेज्वल ज्वलज्ज्वाला सहस्रपरिवृते, महाट्टहास बधिरीकृत दिगन्तरे, सर्वायुध परिपूर्ण्णे, कपालहस्ते, गजाजिनोत्तरीये,
भूतवेताळबृन्दपरिवृते,
प्रकन्पित धराधरे,
मधुकैटमहिषासुर, धूम्रलोचन चण्डमुण्डरक्तबीज शुंभनिशुंभादि दैत्यनिष्कण्ढके,
काळरात्रि, महामाये, शिवे, नित्ये, इन्द्राग्नियमनिरृति वरुणवायु सोमेशान प्रधान शक्ति भूते, ब्रह्माविष्णु शिवस्तुते, त्रिभुवनाधाराधारे, वामे, ज्येष्ठे, रौद्र्यंबिके, ब्राह्मी,
माहेश्वरि, कौमारि, वैष्णवी शंखिनी वाराहीन्द्राणी चामुण्डा शिवदूति महाकाळि महालक्ष्मी, महासरस्वतीतिस्थिते,नादमध्यस्थिते, महोग्रविषोरगफणामणिघटित मकुटकटकादिरत्न महाज्वालामय
पादबाहुदण्डोत्तमांगे, महामहिषोपरि गन्धर्व विद्याधराराधिते, नवरत्ननिधिकोशे तत्त्वस्वरूपे वाक्पाणिपादपायूपस्थात्मिके,
शब्दस्पर्शरूपरसगन्धादि स्वरूपे,
त्वक्चक्षुः श्रोत्रजिह्वाघ्राणमहाबुद्धिस्थिते,
ॐ ऐंकार ह्रीं कार क्ळीं कारहस्ते
आं क्रों आग्नेयनयनपात्रे प्रवेशय,
द्रां शोषय शोषय, द्रीं सुकुमारय सुकुमारय, ह्रीं सर्वं प्रवेशय प्रवेशय, त्रैलोक्यवर वर्ण्णिनि समस्त चित्तं वशीकरु वशीकरु
मम शत्रून्, शीघ्रं मारय मारय,
जाग्रत् स्वप्न सुषुप्त्य
वस्थासु अस्मान् राजचोराग्निजल वात विषभूत-शत्रुमृत्यु-ज्वरादि स्फोटकादि नानारोगेभ्योः
नानाभिचारेभ्यो नानापवादेभ्यः परकर्म मन्त्र तन्त्र यन्त्रौषध शल्यशून्य क्षुद्रेभ्यः
सम्यङ्मां रक्ष रक्ष, ॐ ऐं ह्रां ह्रीं
ह्रूं ह्रैं ह्रः, स्फ्रां स्फ्रीं स्फ्रैं
स्फ्रौं स्फ्रः - मम सर्व कार्याणि साधय साधय हुं फट् स्वाहा -राज द्वारे श्मशाने वा
विवादे शत्रु सङ्कटे । भूताग्नि चोर मद्ध्यस्थे मयि कार्याणि साधय ॥ स्वाहा ।
चण्डिका हृदयं गुह्यं त्रिसन्ध्यं यः पठेन्नरः । सर्व काम प्रदं पुंसां भुक्ति मुक्तिं प्रियच्चति
॥
॥हरी ॐ॥