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Saturday, 2 December 2017

पाशुपतास्त्र मंत्र

पाशुपतास्त्र मंत्र



मंत्र - ऊँ श्लीं पशु हुं फट्।


विनियोग :- ऊँ अस्य मंत्रस्य ब्रह्मा ऋषिः, गायत्री छंदः, पशुपतास्त्ररूप पशुपति देवता, सर्वत्र यशोविजय लाभर्थे जपे विनियोगः।

षडंग्न्यास :- ऊँ हुं फट् ह्रदयाय नमः। श्लीं हुं फट् शिरसे स्वाहा। पं हुं फट् शिखायै वष्ट्। शुं हुं फट् कवचाय हुं। हुं हुं फट् नेत्रत्रयाय वौष्ट्। फट् हुं फट् अस्त्राय फट्।

ध्यान:-
मध्याह्नार्कसमप्रभं शशिधरं भीमाट्टहासोज्जवलम् त्र्यक्षं पन्नगभूषणं शिखिशिखाश्मश्रु-स्फुरन्मूर्द्धजम्। हस्ताब्जैस्त्रिशिखं समुद्गरमसिं शक्तिदधानं विभुम् दंष्ट्रभीम चतुर्मुखं पशुपतिं दिव्यास्त्ररूपं स्मरेत्।।

मालामंत्र

ॐ नमो भगवते महापाशुपतायातुलबलवीर्यपराक्रमाय त्रिपन्चनयनाय नानारुपाय नानाप्रहरणोद्यताय सर्वांगडरक्ताय भिन्नांजनचयप्रख्याय श्मशान वेतालप्रियाय सर्वविघ्ननिकृन्तन रताय सर्वसिद्धिप्रदाय भक्तानुकम्पिने असंख्यवक्त्रभुजपादाय तस्मिन् सिद्धाय वेतालवित्रासिने शाकिनीक्षोभ जनकाय व्याधिनिग्रहकारिणे पापभन्जनाय सूर्यसोमाग्नित्राय विष्णु कवचाय खडगवज्रहस्ताय यमदण्डवरुणपाशाय रूद्रशूलाय ज्वलज्जिह्राय सर्वरोगविद्रावणाय ग्रहनिग्रहकारिणे दुष्टनागक्षय कारिणे।
ॐ कृष्णपिंग्डलाय फट। हूंकारास्त्राय फट। वज्र हस्ताय फट। शक्तये फट। दण्डाय फट। यमाय फट। खडगाय फट। नैऋताय फट। वरुणाय फट। वज्राय फट। पाशाय फट। ध्वजाय फट। अंकुशाय फट। गदायै फट। कुबेराय फट। त्रिशूलाय फट। मुदगराय फट। चक्राय फट। पद्माय फट। नागास्त्राय फट। ईशानाय फट। खेटकास्त्राय फट। मुण्डाय फट। मुण्डास्त्राय फट। काड्कालास्त्राय फट। पिच्छिकास्त्राय फट। क्षुरिकास्त्राय फट। ब्रह्मास्त्राय फट। शक्त्यस्त्राय फट। गणास्त्राय फट। सिद्धास्त्राय फट। पिलिपिच्छास्त्राय फट। गंधर्वास्त्राय फट। पूर्वास्त्रायै फट। दक्षिणास्त्राय फट। वामास्त्राय फट। पश्चिमास्त्राय फट। मंत्रास्त्राय फट। शाकिन्यास्त्राय फट। योगिन्यस्त्राय फट। दण्डास्त्राय फट। महादण्डास्त्राय फट। नमोअस्त्राय फट। शिवास्त्राय फट। ईशानास्त्राय फट। पुरुषास्त्राय फट। अघोरास्त्राय फट। सद्योजातास्त्राय फट। हृदयास्त्राय फट। महास्त्राय फट। गरुडास्त्राय फट। राक्षसास्त्राय फट। दानवास्त्राय फट। क्षौ नरसिन्हास्त्राय फट। त्वष्ट्रास्त्राय फट। सर्वास्त्राय फट। नः फट। वः फट। पः फट। फः फट। मः फट। ह्रीं: फट। पेः फट। भूः फट। भुवः फट। स्वः फट। महः फट। जनः फट। तपः फट। सत्यं फट। सर्वलोक फट। सर्वपाताल फट। सर्वतत्व फट। सर्वप्राण फट। सर्वनाड़ी फट। सर्वकारण फट। सर्वदेव फट। ह्रीं फट। क्लीं फट। डूं फट। स्त्रुं फट। स्वां फट। लां फट। वैराग्याय फट। मायास्त्राय फट। कामास्त्राय फट। क्षेत्रपालास्त्राय फट। हुंकरास्त्राय फट। भास्करास्त्राय फट। चंद्रास्त्राय फट। विघ्नेश्वरास्त्राय फट। गौः गां फट। स्त्रों स्त्रौं फट। हौं हों फट। भ्रामय भ्रामय फट। संतापय संतापय फट। छादय छादय फट। उन्मूलय उन्मूलय फट। त्रासय त्रासय फट। संजीवय संजीवय फट। विद्रावय विद्रावय फट। सर्वदुरितं नाशय नाशय फट।

अस्तु

Thursday, 30 November 2017

रत्न प्राप्ति

कल्पन्ताम् सूक्त, रत्नवान् धनवानात्मा देवता



। ॐ अस्य यजुर्वेद्स्य कल्पन्ताम् सूक्तंस्य, देवा ऋषयः, रत्नवान् धनवानात्मा देवता, भुरिगतिशक्वरी छन्द: , धनरत्न  प्राप्ति हेतेवे जप करिस्यामी ।

मंत्र

। ओ३म् अश्मा॑ च मे॒ मृत्ति॑का च मे गि॒रय॑श्च मे॒ पर्व॑ताश्च मे॒ सिक॑ताश्च मे॒ वन॒स्पत॑यश्च मे॒ हिर॑ण्यञ्च॒ मे य॑श्च मे श्या॒मञ्च॑ मे लो॒हञ्च॑ मे॒ सीस॑ञ्च मे॒ त्रपु॑ च मे य॒ज्ञेन॑ कल्पन्ताम्॥


रत्न प्राप्ति का मतलब धन प्राप्ति की विधि का ज्ञान भी हैं ।

अस्तु !




Wednesday, 29 November 2017

नष्ट द्रव्य प्राप्ति सूक्त

॥ नष्ट द्रव्य प्राप्ति सूक्तम् ॥

ॐ अस्य नष्ट द्रव्य प्राप्ति सूक्त मंत्रस्य, भारद्वाज बार्हस्पत्य ऋषि: , गायत्री छन्द:, पूषा देवता:
नष्ट द्रव्य प्राप्ति हेतवे जप करिष्यामि ।

मन्त्र

सं पू॑षन्वि॒दुषा॑ नय॒ यो अञ्ज॑सानु॒शास॑ति । य ए॒वेदमिति॒ ब्रव॑त् ॥ समु॑ पू॒ष्णा ग॑मेमहि॒ यो गृ॒हाँ अ॑भि॒शास॑ति । इ॒म ए॒वेति॑ च॒ ब्रव॑त् ॥ पू॒ष्णश्च॒क्रं न रि॑ष्यति॒ न कोशोऽव॑ पद्यते । नो अ॑स्य व्यथते प॒विः ॥ यो अ॑स्मै ह॒विषावि॑ध॒न्न तं पू॒षापि॑ मृष्यते । प्र॒थ॒मो वि॑न्दते॒ वसु॑ ॥ पू॒षा गा अन्वे॑तु नः पू॒षा र॑क्ष॒त्वर्व॑तः । पू॒षा वाजं॑ सनोतु नः ॥ पूष॒न्ननु॒ प्र गा इ॑हि॒ यज॑मानस्य सुन्व॒तः । अ॒स्माकं॑ स्तुव॒तामु॒त ॥ माकि॑र्नेश॒न्माकीं॑ रिष॒न्माकीं॒ सं शा॑रि॒ केव॑टे । अथारि॑ष्टाभि॒रा ग॑हि ॥ शृ॒ण्वन्तं॑ पू॒षणं॑ व॒यमिर्य॒मन॑ष्टवेदसम् । ईशा॑नं रा॒य ई॑महे ॥ पूष॒न्तव॑ व्र॒ते व॒यं न रि॑ष्येम॒ कदा॑ च॒न । स्तो॒तार॑स्त इ॒ह स्म॑सि ॥ परि॑ पू॒षा प॒रस्ता॒द्धस्तं॑ दधातु॒ दक्षि॑णम् । पुन॑र्नो न॒ष्टमाज॑तु ॥

नष्ट द्रव्य कई तरह का हो सकता हैं

गड़ा हुआ धन ।
किसी का कहीं गिरा हुआ धन जो मिल नहीं रहा हों, अपने घर में ।
या ऐसा धन जो आप किसी को देकर भूल गएँ हो ।
या आप कहीं रास्तें में जाएँ या कही मीना बाज़ार में तो वहां भी बहुत कुछ गिर सकतां हैं तो वो आपको दृष्टगत हो जाएँ ( नहीं तो कचरे में भी जा सकता हैं ) ।
आप का पूर्वार्जित ज्ञान, विद्यां या व्यवहार जो अब काम आ जाएँ ।

सोम्य प्रयोग

धन प्रदायक ऋषियों में भृगु ऋषि उत्तम हैं , भृगु, लक्ष्मी और शुक्र  के पिता भी हैं । भृगु ऋषि का चित्र लगा कर आप उपरोक्त सूक्त को नित्य पांच बार भी बोलतें हैं तो आप को ऐसा धन आपको नज़र नहीं आ रहा हैं वो मिलेगा। (सिर्फ ५ या ६ दिन में )


तंत्र प्रयोग

माता वैष्णो देवी और बाबा अमरनाथ का फोटो लगाए ।

घी का दीप जलाएं ( साइड वाली लो नहीं होनी चाहियें मतलब ऐसी बत्ती जो दीपक के किनारे को न छूती हो,।
दीप की लो में कालिख नहीं होनी चाहियें, वो साफ और स्पस्ट होनी चाहियें, यह आपको देखना हैं )।

अब आपको एक संकल्प लेना हैं की में तिन या पांच दिन इस मंत्र के जप करूंगा ( कम से कम तिन दिन अधिक से अधिक सात दिन ) ( जप संख्या कम से कम 31 बार ज्यादा से ज्यादा 108 बार )

किसी भी दिन इसको प्रारम्भ करें ।
एक बार जिस स्थान और समय पर आप इसे करें वापस उसी जगह और स्थान पर आपको प्रतिदिन करना हैं ।
और संकल्प पूरा होने के बाद आपको किसी भी दिन स्वप्न में वह संकेत मिल सकता हैं । जिससे आप को नष्ट या अदृष्ट धन की प्राप्ति हो सकती हैं ।(स्वप्न में संकेत बहुत ही साधारण तरीकें से मिल सकतें हैं जैसे आपकी १० मिनिट के लिए आँख लग जाएँ चाहे आप घर पर हो या कहीं और तो आपको कुछ दिख सकता हैं । संकेत इतने साधारण तरीके से भी हो सकता हैं की आपको याद ही ना रहें । यह सब आपको देखना हैं ।)

अंत में बात ये हैं की एक २००० का नोट सड़क पर अगर पड़ा हो तो भीड़ भरे बाज़ार में भी उस पर सिर्फ आपकी नज़र पड़े ।

यहाँ आपको क्या अनुभव होते, ये आप जरूर बताएं

Tuesday, 28 November 2017

OUIJA BOARD


OUIJA BOARD


OUIJA BOARD को इस्तेमाल करने से पहले हनुमान जी के एक चित्र पर 11 बार हनुमान चालीसा करें 
और उसे ढँक कर रख दे और कोई शेतानी आत्मा आने पर उस तस्वीर को हाथ में ले लेवें ।
या अपने मित्र को जिसने उस दिन ११ बार हनुमान चालीसा की हो । उसको दुसरे कमरे में रहने के लियें कहें और कोई संकट आने पर उसे बुलावें ।

जिस कमरे में आप OUIJA BOARD प्रयोग कर रहें हैं । उसमे कोई और देवता की तस्वीर या कोई अन्य देवता से संबंधित चीज़ नहीं होनी चाहिए । वर्ना कोई प्रत्यक्षीकरण नहीं होगा ।


पश्चिम मे लोग आत्माओ को बुलाने के लिये OUIJA BOARD का इस्तेमाल करते हैं ।
ENGLISH भाषा जो आज संसार भर में विस्तारित हैं । और जिस लोक की ये भाषा हैं उस लोक का जो स्पंदन हैं, और जो मायावी शक्तिया हैं वो भी इसके अन्दर में हैं ।


अगर आप इस OUIJA BOARD के प्रयोग करना चाहें तो इसको प्रिंट करां कर लेमिनेशन करा ले या किसी लकड़ी की चोकी पर जो थोड़ी चिकनी हो उस पर काले मोटे ब्रश से काले कलर से बना लेवें । OUIJA BOARD स्पष्ट बनाना चाहिये । सही यही रहता हैं की आप उसको प्रिंट करा कर लेमिनेशन करा ले । एक लकड़ी का टुकड़ा जिसमे फिसलने के लियें निचे सनमाइका लगा हो उसके बिच में एक छेद कर लेवें ।
और उसे मार्कर की तरह उपयोग करें ।



 समय रात्रि 1.४५ के बाद  और ३.१५ तक 





इस साधना में कठोर ब्रह्मचर्य अनिवार्य हैं ।


Sunday, 26 November 2017

विष्णु दशावतार स्तोत्र ( wealth in share market )



शेयर बाज़ार में आपका पैसा रुका हुवा हैं तो विष्णु दशावतार स्तोत्र का पाठ आपका रुका हुवां धन दिला सकता हैं । विष्णु का जगत में जो नियोग हैं । एक के बाद एक अवतार ये एक शेयर या अंश की तरह हैं । जो निरंतर विकसित क्रम मैं हैं । मतलब एक अवतार के बाद एक अवतार विकसित क्रम में, निरंतर विकास की और ।
में शेयर बाज़ार से दुरी बनाए रखने में ही भलाई समझता था । इसके पांच पाठ रोज़ाना के बाद मेने DMAT अकाउंट खुलवाया और उसी समय (2009) COAL INDIA का आफर बाज़ार में आया हुआ था । मैंने पैसे लगाए और लाभ प्राप्त किया  और सभी ने इसमें लाभ प्राप्त किया था ।

॥ विष्णु दशावतार स्तोत्र ॥

ॐ आदाय वेदान सकलान समुद्रान्निहत्यम शंखं रिपुमत्य उग्रं ।
दप्ताय पूरा येन पितामहाय विष्णुम तमाद्य भज मत्स्यरूपम ॥
दिव्यामृतार्थ मथिते महाब्धौ देवासुरेर्वासुकी मंदराद्यै:।
भुमेर्महावेग विघुर्णितायास्त कुर्ममाधारगतम् स्मरामि ॥
समुद्रकांची सरिदुत्तरिया वसुंधरा मेरुकिरीटभारा ।
दंष्ट्राग्रतो येन समुधृता भूस्तामादिकोलम शरणम प्रपद्ये ॥
भक्तार्तिभंगक्षमया धिया य: स्तम्भान्तरालादूदितो नृसिंहम ।
रिपुसुराणा निशितैर्नखाग्रेर्विदारयंत न च विस्मरामि ॥
चतुसमुद्राभरणाधरीत्री न्यासाय नालं चरणस्य यस्य ।
एकस्य नान्यस्य पदम् सुराणा त्रिविक्रमं सर्वगतम नमामि ॥
त्रि:सप्तकृत्वो नृपतिन्निहत्य यस्तर्पणं रक्तमय पितृभ्यं:।
चकार दोर्दंडबलेन सम्यक तमआदिशूर प्रणमामी रामम ॥
कुले रघुणा समवाप्य जन्म विधाय सेतुम जल्धेर्जलांत: ।
लंकेश्वरं य: समयांचकार सीतापतिम तं प्रणमामि भक्त्या ॥
हलेन सर्वानसुराननिकृश्य चकार चूर्ण मुसल प्रहारै: ।
य: कृष्णमासाध्य बलम बलियान भक्त्या भजे तम बलभद्र रामम ॥
पूरासुराणामसुरन्विजेतूं समभावयनछ्रीवर चिन्हवेशम ।
चकार य: शास्त्रममोघकल्पम तम मुल्भूतम प्रणतोस्मि बुद्धम् ॥
कल्पावसाने निखिल: सुरै: स्वै: संघट्टयामास निमेषमात्रात् ।
यस्य तेजसा स्वेन ददाह भीमो विष्णवात्मकं तं तुरंग भजाम् ॥

शंखम सुचक्रं सुगदाम् सरोजम् दोर्भिर्दधानम् गरुडाधिरूढम् ।
लक्ष्मीवत्स चिन्हम् जगदादिमूलं तमालनीलं हृदि विष्णुमीडे ॥
क्षीराम्बुधो शेषविशेषकल्पे श्यानमन्त: स्मित्शोभीवक्त्रं ।
उत्फुल्लनेत्राम्बुजमम्बुदाभमाद्यं श्रुतीनामसकृत्स्मरामि ॥

प्रीणयेदनया स्तुत्या जगन्नाथं जगन्मयम् ।
धर्मार्थ काम मोक्षाणामाप्तये पुरुषोत्तमम् ॥

इस स्तोत्र से आपको पूर्वजो की सम्पति भी प्राप्त हो सकती हैं । या कोई रिश्तेदार आपके नाम अपनी कुछ सम्पति या सारी सम्पति कर सकता हैं ।
बुधवार से शनिवार इस स्तोत्र का पाठ नील वस्त्र पहन कर करें बाकी रवि, सोम और मंगल को श्वेत वस्त्र पहन कर इस स्तोत्र का पाठ करें ।

स्वप्न संकेत
इसमें आपको स्वप्न में आपका बड़ा भाई या दोस्त जो आपसे उमर में बड़ा हो अपना स्तंभित लिंग हाथ में लियें दिखाई देगा । यह शेयर बाज़ार में लाभ सम्बंधी स्वप्न में संकेत हैं । ये जूंआ, सट्टा और लाटरी के द्वारा भी धन प्राप्ति का संकेत हैं ।


अपराजिता ( The undefeated )

त्रैलोक्यविजया अपराजितास्तोत्रम् ।

ॐ नमोऽपराजितायै ।
ॐ अस्या वैष्णव्याः पराया अजिताया महाविद्यायाः वामदेव-बृहस्पति-मार्केण्डेया ऋषयः ।गायत्र्युष्णिगनुष्टुब्बृहती छन्दांसि । लक्ष्मीनृसिंहो देवता । ॐ क्लीं श्रीं ह्रीं बीजम् ।हुं शक्तिः ।
सकलकामनासिद्ध्यर्थं अपराजितविद्यामन्त्रपाठे विनियोगः ।

ॐ निलोत्पलदलश्यामां भुजङ्गाभरणान्विताम् ।
शुद्धस्फटिकसङ्काशां चन्द्रकोटिनिभाननाम् ॥ १॥
शङ्खचक्रधरां देवी वैष्ण्वीमपराजिताम्
बालेन्दुशेखरां देवीं वरदाभयदायिनीम् ॥ २॥

नमस्कृत्य पपाठैनां मार्कण्डेयो महातपाः ॥ ३॥ मार्ककण्डेय उवाच - शृणुष्वं मुनयः सर्वे सर्वकामार्थसिद्धिदाम् ।
असिद्धसाधनीं देवीं वैष्णवीमपराजिताम् ॥ ४॥

(1) मंत्र

ॐ नमो नारायणाय, नमो भगवते वासुदेवाय, नमोऽस्त्वनन्ताय सहस्रशीर्षायणे, क्षीरोदार्णवशायिने, शेषभोगपर्य्यङ्काय, गरुडवाहनाय, अमोघाय अजाय अजिताय पीतवाससे, ॐ वासुदेव सङ्कर्षण प्रद्युम्न, अनिरुद्ध, हयग्रिव, मत्स्य कूर्म्म, वाराह नृसिंह, अच्युत, वामन, त्रिविक्रम, श्रीधर राम राम राम । वरद, वरद, वरदो भव, नमोऽस्तु ते, नमोऽस्तुते, स्वाहा, ॐ असुर-दैत्य-यक्ष-राक्षस-भूत-प्रेत-पिशाच-कूष्माण्ड- सिद्ध-योगिनी-डाकिनी-शाकिनी-स्कन्दग्रहान्उपग्रहान्नक्षत्रग्रहांश्चान्या हन हन पच पच मथ मथ विध्वंसय विध्वंसय विद्रावय विद्रावय चूर्णय चूर्णय शङ्खेन चक्रेण वज्रेण शूलेन गदया मुसलेन हलेन भस्मीकुरु कुरु स्वाहा । ॐ सहस्रबाहो सहस्रप्रहरणायुध, जय जय, विजय विजय, अजित, अमित, अपराजित, अप्रतिहत, सहस्रनेत्र, ज्वल ज्वल, प्रज्वल प्रज्वल, विश्वरूप बहुरूप, मधुसूदन, महावराह, महापुरुष, वैकुण्ठ, नारायण, पद्मनाभ, गोविन्द, दामोदर, हृषीकेश, केशव, सर्वासुरोत्सादन, सर्वभूतवशङ्कर,  सर्वदुःस्वप्नप्रभेदन, सर्वयन्त्रप्रभञ्जन, सर्वनागविमर्दन, सर्वदेवमहेश्वर, सर्वबन्धविमोक्षण,सर्वाहितप्रमर्दन, सर्वज्वरप्रणाशन, सर्वग्रहनिवारण, सर्वपापप्रशमन, जनार्दन, नमोऽस्तुते स्वाहा । विष्णोरियमनुप्रोक्ता सर्वकामफलप्रदा । सर्वसौभाग्यजननी सर्वभीतिविनाशिनी ॥ ५॥

सर्वैंश्च पठितां सिद्धैर्विष्णोः परमवल्लभा । नानया सदृशं किङ्चिद्दुष्टानां नाशनं परम् ॥ ६॥
विद्या रहस्या कथिता वैष्णव्येषापराजिता ।पठनीया प्रशस्ता वा साक्षात्सत्त्वगुणाश्रया ॥ ७॥


ॐ शुक्लाम्बरधरं विष्णुं शशिवर्णं चतुर्भुजम् ।
प्रसन्नवदनं ध्यायेत्सर्वविघ्नोपशान्तये ॥ ८॥

अथातः सम्प्रवक्ष्यामि ह्यभयामपराजिताम् । या शक्तिर्मामकी वत्स रजोगुणमयी मता ॥ ९॥
सर्वसत्त्वमयी साक्षात्सर्वमन्त्रमयी च या ।या स्मृता पूजिता जप्ता न्यस्ता कर्मणि योजिता ।
सर्वकामदुधा वत्स शृणुष्वैतां ब्रवीमि ते ॥ १०॥ य इमामपराजितां परमवैष्णवीमप्रतिहतां पठति सिद्धां स्मरति सिद्धां महाविद्यां जपति पठति शृणोति स्मरति धारयति कीर्तयति वा न तस्याग्निवायुवज्रोपलाशनिवर्षभयं,
न समुद्रभयं, न ग्रहभयं, न चौरभयं, न शत्रुभयं, न शापभयं वा भवेत् ।क्वचिद्रात्र्यन्धकारस्त्रीराजकुलविद्वेषि-विषगरगरदवशीकरण- विद्वेष्णोच्चाटनवधबन्धनभयं वा न भवेत् । एतैर्मन्त्रैरुदाहृतैः सिद्धैः संसिद्धपूजितैः ।

(२) मंत्र
 ॐ नमोऽस्तुते ।अभये, अनघे, अजिते, अमिते, अमृते, अपरे, अपराजिते, पठति, सिद्धे जयति सिद्धे, स्मरति सिद्धे, एकोनाशीतितमे, एकाकिनि, निश्चेतसि, सुद्रुमे, सुगन्धे, एकान्नशे, उमे ध्रुवे, अरुन्धति, गायत्रि, सावित्रि, जातवेदसि, मानस्तोके, सरस्वति, धरणि, धारणि, सौदामनि, अदिति, दिति, विनते, गौरि, गान्धारि, मातङ्गी कृष्णे, यशोदे, सत्यवादिनि, ब्रह्मवादिनि, कालि, कपालिनि, करालनेत्रे, भद्रे, निद्रे, सत्योपयाचनकरि, स्थलगतं जलगतं अन्तरिक्षगतं वा मां रक्ष सर्वोपद्रवेभ्यः स्वाहा ।


यस्याः प्रणश्यते पुष्पं गर्भो वा पतते यदि । म्रियते बालको यस्याः काकवन्ध्या च या भवेत् ॥ ११॥
धारयेद्या इमां विद्यामेतैर्दोषैर्न लिप्यते । गर्भिणी जीववत्सा स्यात्पुत्रिणी स्यान्न संशयः ॥ १२॥
भूर्जपत्रे त्विमां विद्यां लिखित्वा गन्धचन्दनैः । एतैर्दोषैर्न लिप्येत सुभगा पुत्रिणी भवेत् ॥ १३॥
रणे राजकुले द्यूते नित्यं तस्य जयो भवेत् । शस्त्रं वारयते ह्योषा समरे काण्डदारुणे ॥ १४॥
गुल्मशूलाक्षिरोगाणां क्षिप्रं नाश्यति च व्यथाम् ॥ शिरोरोगज्वराणां न नाशिनी सर्वदेहिनाम् ॥ १५॥
इत्येषा कथिता विध्या अभयाख्याऽपराजिता । एतस्याः स्मृतिमात्रेण भयं क्वापि न जायते ॥ १६॥
नोपसर्गा न रोगाश्च न योधा नापि तस्कराः । न राजानो न सर्पाश्च न द्वेष्टारो न शत्रवः ॥१७॥
यक्षराक्षसवेताला न शाकिन्यो न च ग्रहाः । अग्नेर्भयं न वाताच्व न स्मुद्रान्न वै विषात् ॥ १८॥
कार्मणं वा शत्रुकृतं वशीकरणमेव च । उच्चाटनं स्तम्भनं च विद्वेषणमथापि वा ॥ १९॥
न किञ्चित्प्रभवेत्तत्र यत्रैषा वर्ततेऽभया । पठेद् वा यदि वा चित्रे पुस्तके वा मुखेऽथवा ॥ २०॥
हृदि वा द्वारदेशे वा वर्तते ह्यभयः पुमान् । हृदये विन्यसेदेतां ध्यायेद्देवीं चतुर्भुजाम् ॥ २१॥
रक्तमाल्याम्बरधरां पद्मरागसमप्रभाम् । पाशाङ्कुशाभयवरैरलङ्कृतसुविग्रहाम् ॥ २२॥
साधकेभ्यः प्रयच्छन्तीं मन्त्रवर्णामृतान्यपि । नातः परतरं किञ्चिद्वशीकरणमनुत्तमम् ॥ २३॥
रक्षणं पावनं चापि नात्र कार्या विचारणा । प्रातः कुमारिकाः पूज्याः खाद्यैराभरणैरपि । तदिदं वाचनीयं स्यात्तत्प्रीत्या प्रीयते तु माम् ॥ २४॥

 ॐ अथातः सम्प्रवक्ष्यामि विद्यामपि महाबलाम् ।
सर्वदुष्टप्रशमनीं सर्वशत्रुक्षयङ्करीम् ॥ २५॥ दारिद्र्यदुःखशमनीं दौर्भाग्यव्याधिनाशिनीम् । भूतप्रेतपिशाचानां यक्षगन्धर्वरक्षसाम् ॥ २६॥ डाकिनी शाकिनी-स्कन्द-कूष्माण्डानां च नाशिनीम् । महारौद्रिं महाशक्तिं सद्यः प्रत्ययकारिणीम् ॥ २७॥ गोपनीयं प्रयत्नेन सर्वस्वं पार्वतीपतेः । तामहं ते प्रवक्ष्यामि सावधानमनाः शृणु ॥ २८॥
एकान्हिकं द्व्यन्हिकं च चातुर्थिकार्द्धमासिकम् । द्वैमासिकं त्रैमासिकं तथा चातुर्मासिकम् ॥ २९॥
पाञ्चमासिकं षाङ्मासिकं वातिक पैत्तिकज्वरम् । श्लैष्पिकं सात्रिपातिकं तथैव सततज्वरम् ॥ ३०॥
मौहूर्तिकं पैत्तिकं शीतज्वरं विषमज्वरम् । द्व्यहिन्कं त्र्यह्निकं चैव ज्वरमेकाह्निकं तथा । क्षिप्रं नाशयेते नित्यं स्मरणादपराजिता ॥ ३१॥

(3) मंत्र

ॐ हॄं हन हन, कालि शर शर, गौरि धम्, धम्, विद्ये आले ताले माले गन्धे बन्धे पच पच विद्ये नाशय नाशय पापं हर हर संहारय वा दुःखस्वप्नविनाशिनि कमलस्तिथते विनायकमातः रजनि सन्ध्ये, दुन्दुभिनादे, मानसवेगे, शङ्खिनि, चाक्रिणि गदिनि वज्रिणि शूलिनि अपमृत्युविनाशिनि विश्वेश्वरि द्रविडि द्राविडि द्रविणि द्राविणि
केशवदयिते पशुपतिसहिते दुन्दुभिदमनि दुर्म्मददमनि । शबरि किराति मातङ्गि ॐ द्रं द्रं ज्रं ज्रं क्रं क्रं तुरु तुरु ॐ द्रं कुरु कुरु । ये मां द्विषन्ति प्रत्यक्षं परोक्षं वा तान् सर्वान्दम दम मर्दय मर्दय तापय तापय गोपय गोपय
पातय पातय शोषय शोषय उत्सादय उत्सादय ब्रह्माणि वैष्णवि माहेश्वरि कौमारि वाराहि नारसिंहि
ऐन्द्रि चामुण्डे महालक्ष्मि वैनायिकि औपेन्द्रि आग्नेयि चण्डि नैरृति वायव्ये सौम्ये ऐशानि ऊर्ध्वमधोरक्ष प्रचण्डविद्ये इन्द्रोपेन्द्रभगिनि । ॐ नमो देवि जये विजये शान्ति स्वस्ति-तुष्टि पुष्टि- विवर्द्धिनि ।
कामाङ्कुशे कामदुधे सर्वकामवरप्रदे । सर्वभूतेषु मां प्रियं कुरु कुरु स्वाहा । आकर्षणि आवेशनि-, ज्वालामालिनि-, रमणि रामणि, धरणि धारिणि, तपनि तापिनि, मदनि मादिनि, शोषणि सम्मोहिनि ।
नीलपताके महानीले महागौरि महाश्रिये । महाचान्द्रि महासौरि महामायूरि आदित्यरश्मि जाह्नवि ।
यमघण्टे किणि किणि चिन्तामणि । सुगन्धे सुरभे सुरासुरोत्पन्ने सर्वकामदुघे ।यद्यथा मनीषितं कार्यं तन्मम सिद्ध्यतु स्वाहा ।ॐ स्वाहा । ॐ भूः स्वाहा । ॐ भुवः स्वाहा । ॐ स्वः स्वहा । ॐ महः स्वहा । ॐ जनः स्वहा ।ॐ तपः स्वाहा । ॐ सत्यं स्वाहा । ॐ भूर्भुवः स्वः स्वाहा । 


यत एवागतं पापं तत्रैव प्रतिगच्छतु स्वाहेत्योम् । अमोघैषा महाविद्या वैष्णवी चापराजिता ॥ ३२॥ स्वयं विष्णुप्रणीता च सिद्धेयं पाठतः सदा । एषा महाबला नाम कथिता तेऽपराजिता ॥ ३३॥ नानया सद्रशी रक्षा। त्रिषु लोकेषु विद्यते । तमोगुणमयी साक्षद्रौद्री शक्तिरियं मता ॥ ३४॥ कृतान्तोऽपि यतो भीतः पादमूले व्यवस्थितः । मूलधारे न्यसेदेतां रात्रावेनं च संस्मरेत् ॥ ३५॥

(४) मंत्र
ध्यान
नीलजीमूतसङ्काशां तडित्कपिलकेशिकाम् । उद्यदादित्यसङ्काशां नेत्रत्रयविराजिताम् ॥ ३६॥
शक्तिं त्रिशूलं शङ्खं च पानपात्रं च विभ्रतीम् । व्याघ्रचर्मपरीधानां किङ्किणीजालमण्डिताम् ॥ ३७॥
धावन्तीं गगनस्यान्तः तादुकाहितपादकाम् । दंष्ट्राकरालवदनां व्यालकुण्डलभूषिताम् ॥ ३८॥
व्यात्तवक्त्रां ललज्जिह्वां भृकुटीकुटिलालकाम् । स्वभक्तद्वेषिणां रक्तं पिबन्तीं पानपात्रतः ॥ ३९॥
सप्तधातून् शोषयन्तीं क्रुरदृष्टया विलोकनात् । त्रिशूलेन च तज्जिह्वां कीलयनतीं मुहुर्मुहः ॥ ४०॥

पाशेन बद्ध्वा तं साधमानवन्तीं तदन्तिके । अर्द्धरात्रस्य समये देवीं धायेन्महाबलाम् ॥ ४१॥ यस्य यस्य वदेन्नाम जपेन्मन्त्रं निशान्तके । तस्य तस्य तथावस्थां कुरुते सापि योगिनी ॥ ४२॥

मंत्र
॥ ॐ बले महाबले असिद्धसाधनी स्वाहा ॥


अमोघां पठति सिद्धां वैष्ण्वीम् ॥ ४३॥ अपराजिताविद्यां ध्यायेत् । दुःस्वप्ने दुरारिष्टे च दुर्निमित्ते तथैव च । व्यवहारे भेवेत्सिद्धिः पठेद्विघ्नोपशान्तये ॥ ४४॥ यदत्र पाठे जगदम्बिके मया विसर्गबिन्द्वऽक्षरहीनमीडितम् । तदस्तु सम्पूर्णतमं प्रयान्तु मे सङ्कल्पसिद्धिस्तु सदैव जायताम् ॥ ४५॥ तव तत्त्वं न जानामि कीदृशासि महेश्वरि । यादृशासि महादेवी तादृशायै नमो नमः ॥ ४६॥

इस स्तोत्र का विधिवत पाठ करने से सब प्रकार के रोग तथा सब प्रकार के शत्रु और सब बन्ध्या दोष नष्ट होता है । विशेष रूप से मुकदमें में सफलता और राजकीय कार्यों मेंअपराजित रहने के लिये यह पाठ रामबाण है ।

राष्ट्र रक्षा ( चंडी मंत्र )

राष्ट्र रक्षा प्रयोग -1
उग्रवाद विध्वंसक यन्त्र
या चामुंडा यन्त्र


राष्ट्र रक्षा के लियें सबसे उचित प्रयोगों में सबसे उपर और एकमात्र चंडी हैं , एकमात्र चंडी हैं, और एकमात्र चंडी हैं। चंडी के अलावा और कुछ नहीं ।
चंडी मंत्र का मतलब सिर्फ चंडी हैं और कुछ नहीं । चंडी और दुर्गा में अंतर हैं । क्योकि दोनों के वर्ण भिन्न हैं ।

  1. बुधवार को इस प्रयोग को शुरू करें ।
  2. यन्त्र को कार्ड पेपर (मोटे पेपर ) पर पेन से बना लेवें ।
  3. एक और यन्त्र बना कर अपनी शर्ट की जेब में रख लेवें ।
  4. वैष्णो देवी की फोटो लगाएं ।
  5. देवी सिंहवाहिनी की फोटो भी लगाएं ।
  6. घी का दीप पांच मिनिट जलाए ।
  7. किसी और देवता का दर्शन मंत्र चित्र से दूर रहें ।
  8. भारत के सन्दर्भ  में मेरे अनुसार चंडी एकमात्र राष्ट्ररक्षक देवी हैं या मंत्र हैं ।
  9. रविवार तक करें और सोमवार और मंगलवार को छोड़कर वापस करना चाहे तो बुधवार को करें ।
  10. मंगलवार को यह प्रयोग ना करें ।
  11. लाल रंग के वस्त्र पहनें ।
  12. लाल रंग का बल्ब जलाये ।
  13. कठोर ब्रह्मचर्य रखें ।
  14. सोमवार मंगल वार को श्वेत वस्त्र पहनें ।
  15. हरे वस्त्र ना पहनें 
  16. हाथ में कोई हरा रत्न या पन्ना हो तो उसे उतार दे ।
  17. हरे रंग दूर रहें ।
  18. वैष्णव इस विश्व में इसका तुरंत परिणाम टीवी पर पांचवें दिन देखें ।
  19. इस मंत्र से स्त्रियाँ उग्र हो जाती हैं । आप उनसे लड़ें नहीं, घर से कहीं बाहर घूम आयें ।

तीन बार यह बोले (ॐ विश्वदेव्यै:, ॐ:, विश्वदेव्यै ॐ विश्वदेव्यै:, समस्त विश्वे मम ह्रदय, स्थापय:, स्थापय:, स्थापय: मम शरीरे स्थिर:, स्थिर:, स्थिर:, ॐ विश्वात्मने:, ॐ विश्वात्मने:, ॐ विश्वात्मने: नमः)


मंत्र 
॥ ॐ चंडी:ॐ चंडी:ॐ चंडी:ॐ चंडी:ॐ चंडी:ॐ ॥

रोजाना ११ बार या १०८ बार 


मेरा प्रयोग काल नवम्बर २००८ से 

आपके सुविधा के लियें ॥ चण्डिकाहृदयस्तोत्रम् ॥ दिया जा रहा हैं। ( इसकी जरुरत नहीं हैं ।)

॥ ॐ नमः चण्डिकायै ॥

अस्य चण्डिका हृदय स्तोत्र महामन्त्रस्य । मार्क्कण्डेय ऋषिः, अनुष्टुप्च्छन्दः, चण्डिका देवता । ह्रां बीजं, ह्रीं शक्तिः, ह्रूं कीलकंअस्य चण्डिका प्रसाद सिद्ध्यर्थे जपे विनियोगः । ह्रां इत्यादि षडंग न्यासः ।

ब्रह्मोवाच । अथातस्सं प्रवक्ष्यामि विस्तरेण यथातथं । चण्डिका हृदयं गुह्यं शृणुष्वैकाग्रमानसः ।

ॐ ऐं ह्रीं क्ळीं, ह्रां, ह्रीं, ह्रूं जय जय चामुण्डे,चण्डिके, त्रिदश, मणिमकुटकोटीर संघट्टित चरणारविन्दे, गायत्री, सावित्री, सरस्वति, महाहिकृताभरणे, भैरवरूप धारिणी, प्रकटित दंष्ट्रोग्रवदने,घोरे, घोराननेज्वल ज्वलज्ज्वाला सहस्रपरिवृते, महाट्टहास बधिरीकृत दिगन्तरे, सर्वायुध परिपूर्ण्णे, कपालहस्ते, गजाजिनोत्तरीये, भूतवेताळबृन्दपरिवृते, प्रकन्पित धराधरे, मधुकैटमहिषासुर, धूम्रलोचन चण्डमुण्डरक्तबीज शुंभनिशुंभादि दैत्यनिष्कण्ढके, काळरात्रि, महामाये, शिवे, नित्ये, इन्द्राग्नियमनिरृति वरुणवायु सोमेशान प्रधान शक्ति भूते, ब्रह्माविष्णु शिवस्तुते, त्रिभुवनाधाराधारे, वामे, ज्येष्ठे, रौद्र्यंबिके, ब्राह्मी, माहेश्वरि, कौमारि, वैष्णवी शंखिनी वाराहीन्द्राणी चामुण्डा शिवदूति महाकाळि महालक्ष्मी, महासरस्वतीतिस्थिते,नादमध्यस्थिते, महोग्रविषोरगफणामणिघटित मकुटकटकादिरत्न महाज्वालामय पादबाहुदण्डोत्तमांगे, महामहिषोपरि गन्धर्व विद्याधराराधिते, नवरत्ननिधिकोशे तत्त्वस्वरूपे वाक्पाणिपादपायूपस्थात्मिके, शब्दस्पर्शरूपरसगन्धादि स्वरूपे, त्वक्चक्षुः श्रोत्रजिह्वाघ्राणमहाबुद्धिस्थिते, ॐ ऐंकार ह्रीं कार क्ळीं कारहस्ते आं क्रों आग्नेयनयनपात्रे प्रवेशयद्रां शोषय शोषय, द्रीं सुकुमारय सुकुमारय, ह्रीं सर्वं प्रवेशय प्रवेशय, त्रैलोक्यवर वर्ण्णिनि समस्त चित्तं वशीकरु वशीकरु मम शत्रून्, शीघ्रं मारय मारय, जाग्रत् स्वप्न सुषुप्त्य वस्थासु अस्मान् राजचोराग्निजल वात विषभूत-शत्रुमृत्यु-ज्वरादि स्फोटकादि नानारोगेभ्योः नानाभिचारेभ्यो नानापवादेभ्यः परकर्म मन्त्र तन्त्र यन्त्रौषध शल्यशून्य क्षुद्रेभ्यः सम्यङ्मां रक्ष रक्ष, ॐ ऐं ह्रां ह्रीं ह्रूं ह्रैं ह्रः, स्फ्रां स्फ्रीं स्फ्रैं स्फ्रौं स्फ्रः - मम सर्व कार्याणि साधय साधय हुं फट् स्वाहा -राज द्वारे श्मशाने वा विवादे शत्रु सङ्कटे । भूताग्नि चोर मद्ध्यस्थे मयि कार्याणि साधय ॥ स्वाहा ।

चण्डिका हृदयं गुह्यं त्रिसन्ध्यं यः पठेन्नरः । सर्व काम प्रदं पुंसां भुक्ति मुक्तिं प्रियच्चति ॥

हरी ॐ

Saturday, 25 November 2017

गुरु प्राप्ति ( Get the Master )














गुरु प्राप्ति

अगर आपको जीवन में ऐसा लगता हो तो की काश एक ऐसा विश्वास एक ऐसी शक्ति साथ में हो जो जीवन में कभी अकस्मात होने वाले संकटों, परेशानियों में आपकी मदद करें, आपका बचाव करें । और कोई आपका गुरुस्वरूप हो और पूर्णत: गुरु समान हो और ज्ञान चाहे वो आधुनिक हो प्राचीन वो आपको मिले । आपको यह स्तिथि मिल जायगी । इसके लियें ।

माता वैष्णो देवी और बाबा अमरनाथ की फोटो आप अपने पूजा स्थान में लगाए ।
चित्र में कोई अन्य मीनाकारी नहीं होनी चाहिए जैसे चांदी या गोल्डन वर्क चित्र एकदम सिंपल होने चाहिए ।
प्लेयिंग कार्ड साइज़ की फोटो ठीक रहेंगे ।
मंदिर में मिलने वाले फोटो उचित हैं ।
उस पर आपके घर में आने जाने वालो की नजर नहीं पड़नी चाहियें ।
आप यह अनुभव करेंगे की सदेव आप के साथ कोई न कोई है ।
यह आपको इतर योनी साधना में भी सहायक होगी । ( भूत - भूतिनी, यक्ष- यक्षी , वैताल वैताली )
बाबा अमरनाथ की फोटो के सामने साधना करते समय आपको यह अनुभव होगा की आपके साथ कोई बेठा हैं ।
बाबा अमरनाथ की उपस्तिथि """""गुरुस्वरूप""""" में , बंधू स्वरुप में , आप के साथ रहेंगीं ।
माता वैष्णो देवी आपको उस शक्ति से कनेक्ट होने में आपकी मदद करेगी जिसकी साधना आपके द्वारा की जा रही हैं ।
माता वैष्णो देवी किसी भी शक्ति के सम्पूर्ण प्रत्यक्षीकरण और पूर्ण सिदधि प्राप्ति का बीजारोपण आपके """""""कपाल"""""में करेंगी ( कपाल लिखा हैं मस्तिष्क नहीं लिखा, मतलब आपके कपाल को जाग्रत करेंगी और उसके बाद उस शक्ति के सामने आने और प्रत्यक्षीकरण की जो उर्जा आपको चाहियें वो आपके कपाल से स्त्रावित होगी। )
माता वैष्णो और बाबा अमरनाथ का चित्र साथ में रख कर साधना करने पर आपको कभी भी कपाल में शक्ति का विस्फोट हो सकता हैं । कभी भी शक्ति आपके के कपाल में पहुँच कर विस्फोट कर सकती हैं । जैसे आपके कपाल के बीच में कोई बम रख कर उसमे विस्फोट कर दिया हो ।
कपाल में एक विस्फोट के साथ आपको यह महसूस होगा की जैसे पानी की कोई झील धरती से एक विस्फोट के साथ फूट पड़ी हों । पानी से आपका पूरा शरीर भीग गया हों । आँखे अपने आप """बलपूर्वक""" बंद हो जायेंगी
जब आप सामान्य स्तिथि में पहुँच कर आँखे खोलेंगे तो आप बाहरी तोर पर पानी नहीं देख पायेंगे ।

इतना लिखना बहुत हैं ।

मंत्र

। ॐ ह्रीं सं नं रं यं ऐं दप्ताय दिव्याय गुरुवे नमः ।


। हरी ॐ ।

माता वैष्णो पतालेश्वरी भी है और बाबा अमरनाथ मस्तक में विराजते हैं  तो पादतल में स्तिथ शक्ति और मस्तिक दोनों के संगम से शक्ति का एक विस्फोट होता हैं ।



Friday, 24 November 2017

॥ कुबेराष्टोत्तरशतनामावलिः ॥ (God Of Wealth)



॥ कुबेराष्टोत्तरशतनामावलिः ॥

ॐ श्रीं ॐ ह्रीं श्रीं ह्रीं क्लीं श्रीं क्लीं वित्तेश्वराय नमः ।

ॐ यक्षराजाय विद्महे अलकाधीशाय धीमहि ।
तन्नः कुबेरः प्रचोदयात् ।

ॐ यक्षाय कुबेराय वैश्रवणाय धनधान्याधिपतये धनधान्यादि समृद्धिं मे देहि दापय स्वाहा । सुवर्णवृष्टिं कुरु मे गृहे श्रीकुबेर । महालक्ष्मी हरिप्रिया पद्मायै नमः । राजाधिराजाय प्रसह्य साहिने नमो वयं वैश्रवणाय कुर्महे ।
 कुबेराज वैश्रवणाय महाराजाय नमः ।

ध्यानम्
मनुजबाह्यविमानवरस्तुतं
गरुडरत्ननिभं निधिनायकम् ।
शिवसखं मुकुटादिविभूषितं
वररुचिं तमहमुपास्महे सदा ॥

अगस्त्य देवदेवेश मर्त्यलोकहितेच्छया ।
पूजयामि विधानेन प्रसन्नसुमुखो भव ॥
अथ कुबेराष्टोत्तरशतनामावलिः ॥


ॐ कुबेराय नमः ।ॐ धनदाय नमः । ॐ श्रीमते नमः ।ॐ यक्षेशाय नमः ।ॐ गुह्यकेश्वराय नमः ।ॐ निधीशाय नमः ।  शङ्करसखाय नमः । ॐ महालक्ष्मीनिवासभुवे नमः ।ॐ महापद्मनिधीशाय नमः । ॐ पूर्णाय नमः । १०
ॐ पद्मनिधीश्वराय नमः । ॐ शङ्खाख्यनिधिनाथाय नमः । ॐ मकराख्यनिधिप्रियाय नमः ।ॐ सुकच्छपाख्यनिधीशाय नमः । ॐ मुकुन्दनिधिनायकाय नमः । ॐ कुन्दाख्यनिधिनाथाय नमः । ॐ नीलनित्याधिपाय नमः । ॐ महते नमः । ॐ वरनिधिदीपाय नमः । ॐ पूज्याय नमः । २० ॐ लक्ष्मीसाम्राज्यदायकाय नमः । ॐ इलपिलापत्याय नमः । ॐ कोशाधीशाय नमः । ॐ कुलोचिताय नमः ।
ॐ अश्वारूढाय नमः । ॐ विश्ववन्द्याय नमः । ॐ विशेषज्ञाय नमः । ॐ विशारदाय नमः । ॐ नलकूबरनाथाय नमः । ॐ मणिग्रीवपित्रे नमः । ३० ॐ गूढमन्त्राय नमः । ॐ वैश्रवणाय नमः । ॐ चित्रलेखामनःप्रियाय नमः ।
ॐ एकपिनाकाय नमः । ॐ अलकाधीशाय नमः । ॐ पौलस्त्याय नमः । ॐ नरवाहनाय नमः । ॐ कैलासशैलनिलयाय नमः । ॐ राज्यदाय नमः । ॐ रावणाग्रजाय नमः । ४० ॐ चित्रचैत्ररथाय नमः । ॐ उद्यानविहाराय नमः । ॐ विहारसुकुतूहलाय नमः । ॐ महोत्सहाय नमः । ॐ महाप्राज्ञाय नमः । ॐ सदापुष्पकवाहनाय नमः । ॐ सार्वभौमाय नमः । ॐ अङ्गनाथाय नमः । ॐ सोमाय नमः । ॐ सौम्यादिकेश्वराय नमः । ५० ॐ पुण्यात्मने नमः । ॐ पुरुहुतश्रियै नमः । ॐ सर्वपुण्यजनेश्वराय नमः ।
ॐ नित्यकीर्तये नमः । ॐ निधिवेत्रे नमः । ॐ लङ्काप्राक्तननायकाय नमः । ॐ यक्षिणीवृताय नमः ।
ॐ यक्षाय नमः । ॐ परमशान्तात्मने नमः । ॐ यक्षराजे नमः । ६० ॐ यक्षिणीहृदयाय नमः ।  ॐ किन्नरेश्वराय नमः । ॐ किम्पुरुषनाथाय नमः । ॐ खड्गायुधाय नमः । ॐ वशिने नमः । ॐ ईशानदक्षपार्श्वस्थाय नमः । ॐ वायुवामसमाश्रयाय नमः । ॐ धर्ममार्गनिरताय नमः । ॐ धर्मसम्मुखसंस्थिताय नमः । ॐ नित्येश्वराय नमः । ७० ॐ धनाध्यक्षाय नमः । ॐ अष्टलक्ष्म्याश्रितालयाय नमः । ॐ मनुष्यधर्मिणे नमः । ॐ सुकृतिने नमः । ॐ कोषलक्ष्मीसमाश्रिताय नमः । ॐ धनलक्ष्मीनित्यवासाय नमः । ॐ धान्यलक्ष्मीनिवासभुवे नमः । ॐ अष्टलक्ष्मीसदावासाय नमः ।ॐ गजलक्ष्मीस्थिरालयाय नमः । ॐ राज्यलक्ष्मीजन्मगेहाय नमः । ८० ॐ धैर्यलक्ष्मीकृपाश्रयाय नमः । ॐ अखण्डैश्वर्यसंयुक्ताय नमः ।ॐ नित्यानन्दाय नमः । ॐ सुखाश्रयाय नमः । ॐ नित्यतृप्ताय नमः । ॐ निराशाय नमः ।ॐ निरुपद्रवाय नमः । ॐ नित्यकामाय नमः । ॐ निराकाङ्क्षाय नमः । ॐ निरूपाधिकवासभुवे नमः । ९० ॐ शान्ताय नमः । ॐ सर्वगुणोपेताय नमः । ॐ सर्वज्ञाय नमः । ॐ सर्वसम्मताय नमः । ॐ सर्वाणिकरुणापात्राय नमः । ॐ सदानन्दकृपालयाय नमः । ॐ गन्धर्वकुलसंसेव्याय नमः । ॐ सौगन्धिककुसुमप्रियाय नमः । ॐ स्वर्णनगरीवासाय नमः । ॐ निधिपीठसमाश्रयाय नमः । १००
ॐ महामेरूत्तरस्थाय नमः । ॐ महर्षिगणसंस्तुताय नमः । ॐ तुष्टाय नमः । ॐ शूर्पणखाज्येष्ठाय नमः ।
ॐ शिवपूजारताय नमः ।ॐ अनघाय नमः । ॐ राजयोगसमायुक्ताय नमः । ॐ राजशेखरपूज्याय नमः ।
ॐ राजराजाय नमः । १०९

।। हरी ॐ ।।

Thursday, 23 November 2017

आद्यादि महालक्ष्मी हृदय स्तोत्र (Goddess of Wealth)


आद्यादि महालक्ष्मी हृदय स्तोत्र (Goddess of Wealth)


अस्य  श्रीआद्यादि श्रीमहालक्ष्मी-हृदय-स्तोत्र-महामन्त्रस्य भार्गव ऋषिः(शिरसी),
अनुष्टुबादि नानाछन्दांसि (मुखे), आद्यादि-श्रीमहालक्ष्मी सहित विष्णु देवता (हृदये)॥

। ॐ बीजं, ह्रीं शक्तिः, ऐं कीलकम् ।
आद्यादि-श्रीमहालक्ष्मी-प्रसादसिद्ध्यर्थं जपे विनियोगः ॥
ओम् ॥ ``आद्यादि-श्रीमहालक्ष्मी देवतयै नमः'' हृदये, ``श्रीं बीजायै नमः'' गुह्ये,
``ह्रीं शक्त्यै नमः'' पादयोः, ``ऐं बलायै नमः'' मूर्धादि-पाद-पर्यन्तं विन्यसेत् ॥
ओम् श्रीं ह्रीं ऐं करतल-करपार्श्वयोः, श्रीं अङ्गुष्ठाभ्यं नमः,
ह्रीं तर्जनीभ्यां नमः, ऐं मध्यमाभ्यां नमः, श्रीं अनामिकाभ्यां नमः,
ह्रीं कनिष्टिकाभ्यां नमः, ऐं करतल करपृष्ठाभ्यां नमः ॥
ॐ हृदयाय नमः, ह्रीं शिरसे स्वाहा, ऐं शिखायै वौषट्,
श्रीं कवचाय हुम्, ह्रीं नेत्राभ्यां वौषट्, भूर्भुवस्सुवरों इति दिग्बन्धः ॥

॥ अथ ध्यानम् ॥

हस्तद्वयेन कमले धारयन्तीं स्वलीलया ॥हार-नूपुर-संयुक्तां महालक्ष्मीं विचिन्तयेत् ॥कौशेय-पीतवसनां अरविन्दनेत्राम्पद्मद्वयाभय-वरोद्यत-पद्महस्ताम् ।उद्यच्छतार्क-सदृशां परमाङ्क-संस्थांध्यायेत् विधीशनत-पादयुगां जनित्रीम् ॥॥श्रीलक्ष्मी-कमलधारिण्यै सिंहवाहिन्यै स्वाहा ॥पीतवस्त्रां सुवर्णाङ्गीं पद्महस्त-द्वयान्विताम् ।लक्ष्मीं ध्यात्वेति मन्त्रेण स भवेत् पृथिवीपतिः ॥मातुलङ्ग-गदाखेटे पाणौ पात्रञ्च बिभ्रती ।वागलिङ्गञ्च मानञ्च बिभ्रती नृपमूर्धनि ॥। ॐ श्रीं ह्रीं ऐं ।वन्दे लक्ष्मीं परशिवमयीं शुद्धजाम्बूनदाभांतेजोरूपां कनक-वसनां सर्वभूषोज्ज्वलाङ्गीम् ।बीजापूरं कनक-कलशं हेमपद्मं दधानाम्आद्यां शक्तिं सकलजननीं विष्णु-माङ्कसंस्थाम् ॥ १॥श्रीमत्सौभाग्यजननीं स्तौमि लक्ष्मीं सनातनीम् ।सर्वकाम-फलावाप्ति-साधनैक-सुखावहाम् ॥ २॥
स्मरामि नित्यं देवेशि त्वया प्रेरितमानसः ।त्वदाज्ञां शिरसा धृत्वा भजामि परमेश्वरीम् ॥ ३॥समस्त-सम्पत्सुखदां महाश्रियंसमस्त-कल्याणकरीं महाश्रियम् ।समस्त-सौभाग्यकरीं महाश्रियंभजाम्यहं ज्ञानकरीं महाश्रियम् ॥ ४॥विज्ञानसम्पत्सुखदां महाश्रियंविचित्र-वाग्भूतिकरीं मनोहराम् ।अनन्त-सौभाग्य-सुखप्रदायिनीं
नमाम्यहं भूतिकरीं हरिप्रियाम् ॥ ५॥समस्त-भूतान्तरसंस्थिता त्वं समस्त-भक्तेश्श्वरि विश्वरूपे ।
तन्नास्ति यत्त्वद्व्यतिरिक्तवस्तु त्वत्पादपद्मं प्रणमाम्यहं श्रीः ॥ ६॥ दारिद्र्य-दुःखौघ-तमोपहन्त्रि त्वत्-पादपद्मं मयि सन्निधत्स्व । दीनार्ति-विच्छेदन-हेतुभूतैः कृपाकटाक्षैरभिषिञ्च मां श्रीः ॥ ७॥ विष्णु-स्तुतिपरां लक्ष्मीं स्वर्णवर्ण-स्तुति-प्रियाम् । वरदाभयदां देवीं वन्दे त्वां कमलेक्षणे ॥ ८॥ अम्ब प्रसीद करुणा-परिपूर्ण-दृष्ट्या
मां त्वत्कृपाद्रविणगेहमिमं कुरुष्व । आलोकय प्रणत-हृद्गत-शोकहन्त्रि त्वत्पाद-पद्मयुगलं प्रणमाम्यहं श्रीः ॥ ९॥
शान्त्यै नमोऽस्तु शरणागत-रक्षणायै कान्त्यै नमोऽस्तु कमनीय-गुणाश्रयायै । क्षान्त्यै नमोऽस्तु दुरितक्षय-कारणायै धात्र्यै नमोऽस्तु धन-धान्य-समृद्धिदायै ॥ १०॥ शक्त्यै नमोऽस्तु शशिशेखर-संस्थितायै
रत्यै नमोऽस्तु रजनीकर-सोदरायै । भक्त्यै नमोऽस्तु भवसागर-तारकायै मत्यै नमोऽस्तु मधुसूदन-वल्लभायै ॥ ११॥लक्ष्म्यै नमोऽस्तु शुभ-लक्षण-लक्षितायै सिद्ध्यै नमोऽस्तु सुर-सिद्ध-सुपूजितायै । धृत्यै नमोऽस्तु मम र्गति-भञ्जनायै गत्यै नमोऽस्तु वरसद्गति-दायकायै ॥ १२॥ देव्यै नमोऽस्तु दिवि देवगणार्चितायै भूत्यै नमोऽस्तु भुवनार्ति-विनाशनायै । शान्त्यै नमोऽस्तु धरणीधर-वल्लभायै पुष्ट्यै नमोऽस्तु पुरुषोत्तम-वल्लभायै ॥ १३॥
सुतीव्र-दारिद्र्य-तमोपहन्त्र्यै नमोऽस्तु ते सर्व-भयापहन्त्र्यै । श्रीविष्णु-वक्षःस्थल-संस्थितायै नमो नमः सर्व-विभूति-दायै ॥ १४॥ जयतु जयतु लक्ष्मीः लक्षणालङ्कृताङ्गी जयतु जयतु पद्मा पद्मसद्माभिवन्द्या । जयतु जयतु विद्या विष्णु-वामाङ्क-संस्था जयतु जयतु सम्यक् सर्व-सम्पत्करी श्रीः ॥ १५॥ जयतु जयतु देवी  देवसङ्घाभिपूज्या जयतु जयतु भद्रा भार्गवी भाग्यरूपा ।जयतु जयतु नित्या निर्मलज्ञानवेद्या जयतु जयतु सत्या सर्वभूतान्तरस्था ॥ १६॥ जयतु जयतु रम्या रत्नगर्भान्तरस्था जयतु जयतु शुद्धा शुद्धजाम्बूनदाभा ।
जयतु जयतु कान्ता कान्तिमद्भासिताङ्गी जयतु जयतु शान्ता शीघ्रमागच्छ सौम्ये ॥ १७॥ यस्याः कलायाः कमलोद्भवाद्या रुद्राश्च शक्रप्रमुखाश्च देवाः । जीवन्ति सर्वेऽपि सशक्तयस्ते प्रभुत्वमाप्ताः परमायुषस्ते ॥ १८॥
॥ मुखबीजम् ॥ ॐ-ह्रां-ह्रीं-अं-आं-यं-दुं-लं-वम् ॥ लिलेख निटिले विधिर्मम लिपिं विसृज्यान्तरं
त्वया विलिखितव्यमेतदिति तत्फलप्राप्तये । तदन्तिकफल्स्फुटं कमलवासिनि श्रीरिमां
समर्पय स्वमुद्रिकां सकलभाग्यसंसूचिकाम् ॥ १९॥ ॥ पादबीजम् ॥ ॐ-अं-आं-ईं-एं-ऐं-कं-लं-रं ॥
कलया ते यथा देवि जीवन्ति सचराचराः । तथा सम्पत्करी लक्ष्मि सर्वदा सम्प्रसीद मे ॥ २०॥
यथा विष्णुर्ध्रुवं नित्यं स्वकलां संन्यवेशयत् । तथैव स्वकलां लक्ष्मि मयि सम्यक् समर्पय ॥ २१॥
सर्वसौख्यप्रदे देवि भक्तानामभयप्रदे । अचलां कुरु यत्नेन कलां मयि निवेशिताम् ॥ २२॥ मुदास्तां मत्फाले परमपदलक्ष्मीः स्फुटकला सदा वैकुण्ठश्रीर्निवसतु कला मे नयनयोः । वसेत्सत्ये लोके मम वचसि लक्ष्मीर्वरकला श्रियश्वेतद्वीपे निवसतु कला मे स्व-करयोः ॥ २३॥ ॥ नेत्रबीजम् ॥ ॐ-घ्रां-घ्रीं-घ्रें-घ्रैं-घ्रों-घ्रौं-घ्रं-घ्रः ॥
तावन्नित्यं ममाङ्गेषु क्षीराब्धौ श्रीकला वसेत् । सूर्याचन्द्रमसौ यावद्यावल्लक्ष्मीपतिः श्रियौ ॥ २४॥
सर्वमङ्गलसम्पूर्णा सर्वैश्वर्यसमन्विता । आद्यादिश्रीर्महालक्ष्मीस्त्वत्कला मयि तिष्ठतु ॥ २५॥
अज्ञानतिमिरं हन्तुं शुद्धज्ञानप्रकाशिका । सर्वैश्वर्यप्रदा मेऽस्तु त्वत्कला मयि संस्थिता ॥ २६॥
अलक्ष्मीं हरतु क्षिप्रं तमः सूर्यप्रभा यथा । वितनोतु मम श्रेयस्त्वत्कला मयि संस्थिता ॥ २७॥
ऐश्वर्यमङ्गलोत्पत्तिः त्वत्कलायां निधीयते । मयि तस्मात्कृतार्थोऽस्मि पात्रमस्मि स्थितेस्तव ॥ २८॥
भवदावेशभाग्यार्हो भाग्यवानस्मि भार्गवि । त्वत्प्रसादात्पवित्रोऽहं लोकमातर्नमोऽस्तु ते ॥ २९॥
पुनासि मां त्वत्कलयैव यस्मात् अतस्समागच्छ ममाग्रतस्त्वम् । परं पदं श्रीर्भव सुप्रसन्ना
मय्यच्युतेन प्रविशादिलक्ष्मीः ॥ ३०॥ श्रीवैकुण्ठस्थिते लक्ष्मि समागच्छ ममाग्रतः । नारायणेन सह मां कृपादृष्ट्याऽवलोकय ॥ ३१॥ सत्यलोकस्थिते लक्ष्मि त्वं ममागच्छ सन्निधिम् ।
वासुदेवेन सहिता प्रसीद वरदा भव ॥ ३२॥ श्वेतद्वीपस्थिते लक्ष्मि शीघ्रमागच्छ सुव्रते ।
विष्णुना सहिता देवि जगन्मातः प्रसीद मे ॥ ३३॥ क्षीराम्बुधिस्थिते लक्ष्मि समागच्छ समाधवे ।
त्वत्कृपादृष्टिसुधया सततं मां विलोकय ॥ ३४॥ रत्नगर्भस्थिते लक्ष्मि परिपूर्णहिरण्मयि ।
समागच्छ समागच्छ स्थित्वाशु पुरतो मम ॥ ३५॥ स्थिरा भव महालक्ष्मि निश्चला भव निर्मले ।
प्रसन्नकमले देवि प्रसन्नहृदया भव ॥ ३६॥ श्रीधरे श्रीमहालक्ष्मि त्वदन्तःस्थं महानिधिम् ।
शीघ्रमुद्धृत्य पुरतः प्रदर्शय समर्पय ॥ ३७॥ वसुन्धरे श्रीवसुधे वसुदोग्ध्रि कृपामयि ।
त्वत्कुक्षिगतसर्वस्वं शीघ्रं मे सम्प्रदर्शय ॥ ३८॥  विष्णुप्रिये रत्नगर्भे समस्तफलदे शिवे ।
त्वद्गर्भगतहेमादीन् सम्प्रदर्शय दर्शय ॥ ३९॥ रसातलगते लक्ष्मि शीघ्रमागच्छ मे पुरः ।
न जाने परमं रूपं मातर्मे सम्प्रदर्शय ॥ ४०॥ आविर्भव मनोवेगात् शीघ्रमागच्छ मे पुरः ।
मा वत्स भैरिहेत्युक्त्वा कामं गौरिव रक्ष माम् ॥ ४१॥ देवि शीघ्रं ममागच्छ धरणीगर्भसंस्थिते ।
मातस्त्वद्भृत्यभृत्योऽहं मृगये त्वां कुतूहलात् ॥ ४२॥ उत्तिष्ठ जागृहि त्वं मे समुत्तिष्ठ सुजागृहि ।
अक्षयान् हेमकलशान् सुवर्णेन सुपूरितान् ॥ ४३॥ निक्षेपान्मे समाकृष्य समुद्धृत्य ममाग्रतः ।
समुन्नतानना भूत्वा सम्यग्धेहि धरातलात् ॥ ४४॥ मत्सन्निधिं समागच्छ मदाहितकृपारसा ।
प्रसीद श्रेयसां दोग्ध्रि लक्ष्मि मे नयनाग्रतः ॥ ४५॥ अत्रोपविश्य लक्ष्मि त्वं स्थिरा भव हिरण्मयी ।
सुस्थिरा भव सम्प्रीत्या प्रसन्ना वरदा भव ॥ ४६॥ आनीतांस्तु त्वया देवि निधीन्मे सम्प्रदर्शय ।
अद्य क्षणेन सहसा दत्त्वा संरक्ष मां सदा ॥ ४७॥ मयि तिष्ठ तथा नित्यं यथेन्द्रादिषु तिष्ठसि ।
अभयं कुरु मे देवि महालक्ष्मि नमोऽस्तु ते ॥ ४८॥ समागच्छ महालक्ष्मि शुद्धजाम्बूनद-स्थिते ।
प्रसीद पुरतः स्थित्वा प्रणतं मां विलोकय ॥ ४९॥ लक्ष्मीर्भुवं गता भासि यत्र यत्र हिरण्मयी ।
तत्र तत्र स्थिता त्वं मे तव रूपं प्रदर्शय ॥ ५०॥ क्रीडन्ती बहुधा भूमौ परिपूर्णकृपा मयि ।
मम मूर्धनि ते हस्तमविलम्बितमर्पय ॥ ५१॥ फलद्भाग्योदये लक्ष्मि समस्तपुरवासिनि ।
प्रसीद मे महालक्ष्मि परिपूर्णमनोरथे ॥ ५२॥ अयोध्यादिषु सर्वेषु नगरेषु समास्थिते ।
विभवैर्विविधैर्युक्तैः समागच्छ मुदान्विते ॥ ५३॥ समागच्छ समागच्छ ममाग्रे भव सुस्थिरा ।
करुणारसनिष्यन्दनेत्रद्वयविशालिनि ॥ ५४॥ सन्निधत्स्व महालक्ष्मि त्वत्पाणिं मम मस्तके ।
करुणासुधया मां त्वमभिषिच्य स्थिउरं कुरु ॥ ५५॥ सर्वराजगृहे लक्ष्मि समागच्छ बलान्विते ।
स्थित्वाऽऽशु पुरतो मेऽद्य प्रसादेनाभयं कुरु ॥ ५६॥ सादरं मस्तके हस्तं मम त्वं कृपयाऽर्पय ।
सर्वराजस्थिते लक्ष्मी त्वत्कला मयि तिष्ठतु ॥ ५७॥ आद्यादि श्रीर्महालक्ष्मि विष्णुवामाङ्कसंस्थिते ।
प्रत्यक्षं कुरु मे रूपं रक्ष मां शरणागतम् ॥ ५८॥ प्रसीद मे महालक्ष्मि सुप्रसीद महाशिवे ।
अचला भव सुप्रीता सुस्थिरा भव मद्गृहे ॥ ५९॥ यावत्तिष्ठन्ति वेदाश्च यावच्चन्द्र-दिवाकरौ ।
यावद्विष्णुश्च यावत्त्वं तावत्कुरु कृपां मयि ॥ ६०॥ चान्द्री कला यथा शुक्ले वर्धते सा दिने दिने ।
तथा दया ते मय्येव वर्धतामभिवर्धताम् ॥ ६१॥ यथा वैकुण्ठनगरे यथा वै क्षीरसागरे ।
तथा मद्भवने तिष्ठ स्थिरं श्रीविष्णुना सह ॥ ६२॥ योगिनां हृदये नित्यं यथा तिष्ठसि विष्णुना ।
तथा मद्भवने तिष्ठ स्थिरं श्रीविष्णुना सह ॥ ६३॥ नारायणस्य हृदये भवती यथाऽऽस्ते
नारायणोऽपि तव हृत्कमले यथाऽऽस्ते । नारायणस्त्वमपि नित्यविभू तथैव तौ तिष्ठतां हृदि ममापि दयान्वितौ श्रीः ॥ ६४॥विज्ञानवृद्धिं हृदये कुरु श्रीः सौभाग्यवृद्धिं कुरु मे गृहे श्रीः । दयासुवृद्धिं कुरुतां मयि श्रीः सुवर्णवृद्धिं कुरु मे गृहे श्रीः ॥ ६५॥ न मां त्यजेथाः श्रितकल्पवल्लि सद्भक्ति-चिन्तामणि-कामधेनो । न मां त्यजेथा भव सुप्रसन्ने गृहे कलत्रेषु च पुत्रवर्गे ॥ ६६॥ ॥ कुक्षिबीजम् ॥ ॐ-अं-आं-ईं-एं-ऐं ॥ आद्यादिमाये त्वमजाण्डबीजं त्वमेव साकार-निराकृती त्वम् । त्वया धृताश्चाब्जभवाण्डसङ्घाः ह्चित्रं चरित्रं तव देवि विष्णोः ॥ ६७॥ ब्रह्मरुद्रादयो देवा वेदाश्चापि न शक्नुयुः । महिमानं तव स्तोतुं मन्दोऽहं शक्नुयां कथम् ॥ ६८॥ अम्ब त्वद्वत्सवाक्यानि सूक्तासूक्तानि यानि च । तानि स्वीकुरु सर्वज्ञे दयालुत्वेन सादरम् ॥ ६९॥ भवन्तं शरणं गत्वा कृतार्थाः स्युः पुरातनाः ।  इति सञ्चिन्त्य मनसा त्वामहं शरणं व्रजे ॥ ७०॥ अनन्ता नित्यसुखिनः त्वद्भक्तास्त्वत्परायणाः ।
इति वेदप्रमाणाद्धि देवि त्वां शरणं व्रजे ॥ ७१॥ तव प्रतिज्ञा मद्भक्ता न नश्यन्तीत्यपि क्वचित् ।
इति सञ्चिन्त्य सञ्चिन्त्य प्राणान् सन्धारयाम्यहम् ॥ ७२॥ त्वदधीनस्त्वहं मातः त्वत्कृपा मयि विद्यते ।
यावत्सम्पूर्णकामः स्यां तावद्देहि दयानिधे ॥ ७३॥ क्षणमात्रं न शक्नोमि जीवितुं त्वत्कृपां विना ।
न हि जीवन्ति जलजा जलं त्यक्त्वा जलाश्रयाः ॥ ७४॥ यथा हि पुत्रवात्सल्यात् जननी प्रस्नुतस्तनी ।
वत्सं त्वरितमागत्य सम्प्रीणयति वत्सला ॥ ७५॥ यदि स्यां तव पुत्रोऽहं माता त्वं यदि मामकी ।
दयापयोधर-स्तन्य-सुधाभिरभिषिञ्च माम् ॥ ७६॥ मृग्यो न गुणलेशोऽपि मयि दोषैक-मन्दिरे ।
पांसूनां वृष्टिबिन्दूनां दोषाणां च न मे मतिः ॥ ७७॥ पापिनामहमेकाग्रो दयालूनां त्वमग्रणीः ।
दयनीयो मदन्योऽस्ति तव कोऽत्र जगत्त्रये ॥ ७८॥ विधिनाहं न सृष्टश्चेत् न स्यात्तव दयालुता ।
आमयो वा न सृष्टश्चेदौषधस्य वृथोदयः ॥ ७९॥ कृपा मदग्रजा किं ते अहं किं वा तदग्रजः ।
विचार्य देहि मे वित्तं तव देवि दयानिधे ॥ ८०॥ माता पिता त्वं गुरुः सद्गतिः श्रीः त्वमेव सञ्जीवनहेतुभूता ।
अन्यं न मन्ये जगदेकनाथे त्वमेव सर्वं मम देवि सत्यम् ॥ ८१॥ ॥ हृदय बीजम् ॥ ॐ-घ्रां-घ्रीं-घ्रूं-घ्रें-घ्रों-घ्रः-हुं फट् कुरु कुरु स्वाहा ॥ आद्यादिलक्ष्मीर्भव सुप्रसन्ना विशुद्धविज्ञानसुखैकदोग्ध्रि । अज्ञानहन्त्री त्रिगुणातिरिक्ता प्रज्ञाननेत्री भव सुप्रसन्ना ॥ ८२॥ अशेषवाग्जाड्य-मलापहन्त्री नवं नवं सुष्टु सुवाक्यदायिनी । ममैव जिह्वाग्रसुरङ्गवर्तिनी भव प्रसन्ना वदने च मे श्रीः ॥ ८३॥ समस्तसम्पत्सु विराजमाना समस्ततेजस्सु विभासमाना । विष्णुप्रिये त्वं भव दीप्यमाना वाग्देवता मे नयने प्रसन्ना ॥ ८४॥ सर्वप्रदर्शे सकलार्थदे त्वं प्रभासुलावण्यदयाप्रदोग्ध्रि । सुवर्णदे त्वं सुमुखी भव श्रीर्हिरण्मयी मे नयने प्रसन्ना ॥ ८५॥ सर्वार्थदा सर्वजगत्प्रसूतिः सर्वेश्वरी सर्वभयापहन्त्री । सर्वोन्नता त्वं सुमुखी च नः श्रीर्हिरण्मयी मे भव सुप्रसन्ना ॥ ८६॥
समस्त-विघ्नौघ-विनाशकारिणी समस्त-भक्तोद्धरणे विचक्षणा । अनन्तसम्मोद-सुखप्रदायिनी हिरण्मयी मे नयने प्रसन्ना ॥ ८७॥ देवि प्रसीद दयनीयतमाय मह्यं देवाधिनाथ-भव-देवगणाभिवन्द्ये । मातस्तथैव भव सन्निहिता दृशोर्मे पत्या समं मम मुखे भव सुप्रसन्ना ॥ ८८॥ मा वत्स भैरभयदानकरोऽर्पितस्ते
मौलौ ममेति मयि दीनदयानुकम्पे । मातः समर्पय मुदा करुणाकटाक्षं माङ्गल्यबीजमिह नः सृज जन्म मातः ॥ ८९॥ ॥ कण्ठबीजम् ॥ ॐ-श्रां-श्रीं-श्रूं-श्रैं-श्रौं-श्रं-श्राः ॥ कटाक्ष इह कामधुक् तव मनस्तु चिन्तामणिः
करः सुरतरुः सदा नवनिधिस्त्वमेवेन्दिरे । भवेत्तव दयारसो मम रसायनं चान्वहं मुखं तव कलानिधिर्विविध-वाञ्छितार्थप्रदम् ॥ ९०॥ यथा रसस्पर्शनतोऽयसोऽपि सुवर्णता स्यात्कमले तथा ते । कटाक्षसंस्पर्शनतो जनानां अमङ्गलानामपि मङ्गलत्वम् ॥ ९१॥ देहीति नास्तीति वचः प्रवेशाद् भीतो रमे त्वां शरणं प्रपद्ये । अतः सदास्मिन्नभयप्रदा त्वं सहैव पत्या मयि सन्निधेहि ॥ ९२॥ कल्पद्रुमेण मणिना सहिता सुरम्या
श्रीस्ते कला मयि रसेन रसायनेन । आस्तामतो मम च दृक्करपाणिपाद- स्पृष्ट्याः सुवर्णवपुषः स्थिरजङ्गमाः स्युः ॥ ९३॥ आद्यादिविष्णोः स्थिरधर्मपत्नी त्वमेव पत्या मम सन्निधेहि । आद्यादिलक्ष्मि त्वदनुग्रहेण पदे पदे मे निधिदर्शनं स्यात् ॥ ९४॥

अस्तु

फलश्रुति ( पाठ नहीं किया जाता हैं ।)

आद्यादिलक्ष्मीहृदयं पठेद्यः स राज्यलक्ष्मीमचलां तनोति । महादरिद्रोऽपि भवेद्धनाढयः तदन्वये श्रीः स्थिरतां प्रयाति ॥ ९५॥ यस्य स्मरणमात्रेण तुष्टा स्याद्विष्णुवल्लभा ।
तस्याभीष्टं ददत्याशु तं पालयति पुत्रवत् ॥ ९६॥ इदं रहस्यं हृदयं सर्वकामफलप्रदम् । जपः पञ्चसहस्रं तु पुरश्चरणमुच्यते ॥ ९७॥ त्रिकालं एककालं वा नरो भक्तिसमन्वितः । यः पठेत् शृणुयाद्वापि स याति परमां श्रियम् ॥ ९८॥ महालक्ष्मीं समुद्दिश्य निशि भार्गववासरे । इदं श्रीहृदयं जप्त्वा पञ्चवारं धनी भवेत् ॥ ९९॥ अनेन हृदयेनान्नं गर्भिण्या अभिमन्त्रितम् । ददाति तत्कुले पुत्रो जायते श्रीपतिः स्वयम् ॥ १००॥ नरेणाप्यथवा नार्या लक्ष्मीहृदयमन्त्रिते । जले पीते च तद्वंशे मन्दभाग्यो न जायते ॥ १०१॥ य आश्वयुङ्मासि च शुक्लपक्षे रमोत्सवे सन्निहिते च भक्त्या । पठेत्तथैकोत्तरवारवृद्ध्या लभेत्स सौवर्णमयीं सुवृष्टिम् ॥ १०२॥ य एकभक्त्याऽन्वहमेकवर्षं विशुद्धधीः सप्ततिवारजापी । स मन्दभाग्योऽपि रमाकटाक्षात् भवेत्सहस्राक्षशताधिकश्रीः ॥ १०३॥


पुन: पाठ

श्रीशांघ्रिभक्तिं हरिदासदास्यं प्रपन्नमन्त्रार्थदृढैकनिष्ठाम् ।
गुरोः स्मृतिं निर्मलबोधबुद्धिं प्रदेहि मातः परमं पदं श्रीः ॥ १०४॥
पृथ्वीपतित्वं पुरुषोत्तमत्वं विभूतिवासं विविधार्थसिद्धिम् ।
सम्पूर्णकीर्तिं बहुवर्षभोगं प्रदेहि मे देवि पुनःपुनस्त्वम् ॥ १०५॥
वादार्थसिद्धिं बहुलोकवश्यं वयःस्थिरत्वं ललनासु भोगम् ।
पौत्रादिलब्धिं सकलार्थसिद्धिं प्रदेहि मे भार्गवि जन्मजन्मनि ॥ १०६॥
सुवर्णवृद्धिं कुरु मे गृहे श्रीः विभूतिवृद्धिं कुरू मे गृहे श्रीः ।
कल्याणवृद्धिं कुरु मे गृहे श्रीः विभूतिवृद्धिं कुरु मे गृहे श्रीः ॥ १०७॥
॥ शिरो बीजम् ॥ ॐ-यं-हं-कं-लं- वं-श्रीम् ॥
ध्यायेल्लक्ष्मीं प्रहसितमुखीं कोटिबालार्कभासां
विद्युत्वर्णाम्बरवरधरां भूषणाढ्यां सुशोभाम् ।
बीजापूरं सरसिजयुगं बिभ्रतीं स्वर्णपात्रं
भर्त्रायुक्तां मुहुरभयदां मह्यमप्यच्युतश्रीः ॥ १०८॥


॥ इति श्रीअथर्वणरहस्ये लक्ष्मीहृदयस्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥


घी का एक दीप जलायें बस यही काफी हैं ।

  1. ११ दिन रोजाना ५ बार पर्याप्त हैं ( ३ घंटे लग सकते हैं। )
  2. मैंने ये प्रयोग किया था एक माह बाद ही उचित परिणाम आ गए थे ।


Tuesday, 21 November 2017

सिद्धलोक


सिद्धलोक




सूर्य सिद्दांत ग्रन्थ के अनुसार पृथ्वी में उपर अन्तरिक्ष में चार पुरिया (लोक, सिद्धलोक) है l

1 पूर्व (भद्राश्ववर्ष पूरी)


भद्राश्व वर्ष पूरी ( पूर्व में जो की चीन से जापान विएतनाम, साइबेरिया का कुछ भाग, फिलिपाइंस, मतलब भारत से पूर्व का भाग ) इन लोक से आने वाले सिद्धो के मनोरूप (मन से साम्यता रखने वाली) प्रवेश स्थली हैं । इस लोक पूर्व के सिद्धो का प्रवेश स्थल हैं । या उनकी उपासना विधि के अनुसार भद्राश्व वर्ष उनके लिए प्रकटरूप हैं , प्रत्यक्ष हैं ।


2 दक्षिण (लंका पूरी)

दक्षिण में लंका पूरी जो की आस्ट्रेलिया महादीप, लंका, भारत के दक्षिण में रहने वाले, के सिद्धो के लियें हैं । यह भूमि में स्थित विल्व से सम्बंधित हैं । उदहारण के लियें इस में प्रवेश के लियें आँखों में अंजन लगा कर, अंजन मंत्र से, उचित स्थान से ६० ७० कदम चलने पर इसमें प्रवेश की स्थिति बनती हैं । (अंजन मंत्र ब्लॉग में दिया हैं, अंजन अंकोल के तेल से बना लेवें । या किसी भी तरीके से बना लेवें)


3 पश्चिम ( रोमपुरी )

पश्चिम में स्थित रोमपुरी, जिसमे पश्चिम के सिद्ध पुरुष जिसमे, पूरा योरोप हैं । इसमें मांसभक्षी क्रूरकर्मा लोगो का प्रवेश हैं या रुद्रों का प्रवेश हैं ।


4 उत्तर ( सिद्धपुरी )

इसके बारे में बहुत से लोग जानते हैं । यह भारत के उत्तर में स्थित सिद्दलोक हैं । यह सिद्धाश्रम के नाम से भी लोकप्रिय हैं ।


अस्तु

मेरे गणित के हिसाब से मुख्यत सिद्दाश्रम जैसे 10 standard लोक होने चाहियें l जो की दस दिशायों सम्बंधित हैं ।
या २७ लोक जो २७ नक्षत्रो से सम्बंधित हैं l या १०८ लोक जो राशीचक्र में १०८ लोकों से सम्बंधित हैं ।

और 1 या २ हज़ार के करीब कुछ शुद्र लोक भी होने चाहियें जिनका पुण्य और वैभव चार सिद्धलोकों से भी ज्यादा हैं ।
जो की इतरयोनी, भूत भूतिनी , वेताल-वेताली , नाग, यक्ष, योगिनी आदि के हैं ।
किसी “दूर की इच्छा” के लियें दूर ना जाएँ क्या पता आप जिसकी तलाश में हों वो आपके बगल में हों ।

अस्तु !!!!!!

ज्ञान प्राप्ति मंत्र (तंत्र)


।।सिद्धाश्रम प्राप्ति मंत्र।।
।।सिद्दगुरु प्राप्ति मंत्र।।
।।रहस्य प्राप्ति मंत्र।।

।। ॐ ह्रीं सं नं रं यं ऐं दप्ताय दिव्याय गुरवें नमः ।।

आप को किसी भी तरह के ज्ञान में कोई परेशानी हो रही हों ।
कंप्यूटर या तंत्र या जियोग्राफी  या साइंस या केमिस्ट्री या किसी यंत्र से सम्बंधित मंत्र को जानना हो तो तिन दिन तक इसको जपने से आप वो ज्ञान मिल जाता हैं ।

Monday, 20 November 2017

पुत्र जन्म ( birth of a child )

पुत्र प्राप्ति यन्त्र

 कार्तिकेय जी 
 पुत्र प्राप्ति यन्त्र 

मंत्र 

। ॐ ह्रीं सुपुत्रौद्ऽभवाय नमः 


जप २० - २५ बार रोजाना पर (किसी अन्य देवता के मंत्र चित्र आदि के दर्शन ना करें)
(घी का दीप ५ मिनिट तक जलाना हैं )


यह यन्त्र मेरे गुरूजी से मुझे जैसे प्राप्त हुवा था वेसे ही में यहाँ दे रहा हु  मेरे विवाह के बाद मेने इसका प्रयोग किया था । इसको मैंने प्रिंटर से प्रिंट से करके एक ताक में रख दिया । और खाली १० ११ बार नित्य मंत्र का जप कर लेता ।कोई अगरबत्ती कोई दीपक नहीं लगाया ।  न ही २०-२५ दिन किसी अन्य देवता की उपसाना की या उनके मंदिर गया । २ माह बाद स्वप्न में मुझे एक पेड़ पर एक सर्प और एक मोर साथ में दिखे । मुझे अनुमान था की यह किस बात का प्रतीक हैं यह आप के घर में  किसी स्त्री के गर्भ में पुत्र संतान होने के बारे में स्वप्न में संकेत था । (पुत्र प्राप्ति सम्बन्धी एक यन्त्र इस तरह का भी हैं जिसमे एक षट्कोण के उपर सर्प बना हुआ हैं और निचे एक मोर । तो सीधा ही ये संकेत मेरे स्वप्न आ गया था ।)
और फिर गर्भकाल पूरा होने पर मुझे एक पुत्र की प्राप्ति हुई ।
अस्तु !!!
इसको घर में कोई भी कर सकता हैं । क्योकि घर में अगर कोई छोटा बालक आता हैं तो वो सभी के लियें पुत्र समान ही होता हैं ।
क्योकि जो इस यन्त्र का प्रयोग करता हैं उसकी दृष्टि से दीक्षित हो कर पुत्र जन्म हो जाता हैं । इसमें जरुरी ये हैं की जो यह प्रयोग करें और जिसको बालक होना हैं, उनकी कम से कम दृष्टि तो आपस में मिलती रहनी चाहिए ।



1. इस प्रयोग में प्रथम 15 दिन ब्रह्मचर्य रखना हैं ।

2. पति और पत्नी को एक दिन छोड़कर एक दिन सेव खानी हैं । या रोजाना खा सकतें हैं । अपनी पाचन शक्ति का ध्यान रखें ।

Sunday, 19 November 2017

शत्रुनाश ( वीर सूक्त )



।। वीर सूक्त ।। 
।। ॐ अस्य यजुर्वेद्स्य: वीर: सूक्त:, भारद्वाज ऋषिः, वीरा: देवता:, ( भुरिगार्षी बृहती, त्रिष्टुप्, निचृत् त्रिष्टुप्, जगती,त्रिष्टुप्, विराडनुष्टुप्, विराट् जगती, निचृत त्रिष्टुप्, भुरिक् त्रिष्टुप् ) छन्द:, जय सिद्धि कराय, शत्रु विध्वंस हेत्वे जपे विनियोग: ।।

मंत्र 

॥ ओ३म् धन्व॑ना॒ गा धन्व॑ना॒जिञ्ज॑येम॒ धन्व॑ना ती॒व्राः स॒मदो॑ जयेम । धनुः॒ शत्रो॑रपका॒मङ्कृ॑णोति॒ धन्व॑ना॒ सर्वाः॑ प्र॒दिशो॑ जयेम॥ ओ३म् व॒क्ष्यन्ती॒वेदा ग॑नीगन्ति॒ कर्ण॑म्प्रि॒यᳯ सखा॑यम्परिषस्वजा॒ना । योषे॑व शिङ्क्ते॒ वित॒ताधि॒ धन्व॒ञ्ज्याऽइ॒यᳯ सम॑ने पा॒रय॑न्ती॥ ओ३म् तेऽआ॒चर॑न्ती॒ सम॑नेव॒ योषा॑ मा॒तेव॑ पु॒त्रम्बि॑भृतामु॒पस्थे॑ । अप॒ शत्रू॑न्विध्यता सँविदा॒ने आर्त्नी॑ऽइ॒मे वि॑ष्पु॒रन्ती॑ऽअ॒मित्रा॑न्॥ ओ३म् ब॑ह्वी॒नाम्पि॒ता ब॒हुर॑स्य पु॒त्रश्चि॒श्चाकृ॑णोति॒ सम॑नाव॒गत्य॑ । इ॑षु॒धिः सङ्काः॒ पृत॑नाश्च॒ सर्वाः॑ पृ॒ष्ठे निन॑द्धो जयति॒ प्रसू॑तः॥ ओ३म् रथे॒ तिष्ठ॑न्नयति वा॒जिनः॑ पु॒रो यत्र॑यत्र का॒मय॑ते सुषार॒थिः । अ॒भीशू॑नाम्महि॒मान॑म्पनायत॒ मनः॑ प॒श्चादनु॑ यच्छन्ति र॒श्मयः॑॥ ओ३म् ती॒व्रान्घोषा॑न्कृण्वते॒ वृष॑पाण॒योश्वा॒ रथे॑भिः स॒ह वा॒जय॑न्तः । अ॑व॒क्राम॑न्तः॒ प्रप॑दैर॒मित्रा॑न्क्षि॒णन्ति॒ शत्रूँ॒रन॑पव्ययन्तः॥ ओ३म् र॑थ॒वाह॑नᳯ ह॒विर॑स्य॒ नाम॒ यत्रायु॑ध॒न्निहि॑तमस्य॒ वर्म॑ । तत्रा॒ रथ॒मुप॑ श॒ग्मᳯ स॑देम वि॒श्वाहा॑ व॒यᳯ सु॑मन॒स्यमा॑नाः॥ ओ३म् स्वा॑दुषᳯसदः॑ पि॒तरो॑ वयो॒धाः कृ॑च्छ्रे॒श्रितः॒ शक्ती॑वन्तो गभी॒राः । चि॒त्रसे॑ना॒ऽइषु॑बला॒ऽअमृ॑ध्राः स॒तोवी॑राऽउ॒रवो॑ व्रातसा॒हाः॥ ओ३म् सु॑प॒र्णँ व॑स्ते मृ॒गोऽअ॑स्या॒ दन्तो॒ गोभिः॒ सन्न॑द्धा पतति॒ प्रसू॑ता । यत्रा॒ नरः॒ सञ्च॒ वि च॒ द्रव॑न्ति॒ तत्रा॒स्मभ्य॒मिष॑वः॒ शर्म॑ यᳯसन्॥ओ३म् ऋजी॑ते॒ परि॑वृङ्धि॒ नोश्मा॑ भवतु नस्त॒नूः । सोमो॒ऽअधि॑ ब्रवीतु॒ नो दि॑तिः॒ शर्म॑ यच्छतु॥ ओ३म् आज॑ङ्घन्ति॒ सान्वे॑षाञ्ज॒घनाँ॒ऽउप॑ जिघ्नते । अश्वा॑जनि॒ प्रचे॑त॒सो श्वा॑न्त्स॒मत्सु॑ चोदय॥ ओ३म् दि॒वः पृ॑थि॒व्याः पर्योज॒ऽउद्भृ॑तँ॒वन॒स्पति॑भ्यः॒ पर्याभृ॑त॑ᳯ सहः॑ । अ॒पामो॒ज्मान॒म्परि॒ गोभि॒रावृ॑त॒मिन्द्र॑स्य॒ वज्र॑ᳯ ह॒विषा॒ रथँ यज॥ ओ३म् इन्द्र॑स्य॒ वज्रो॑ म॒रुता॒मनी॑कम्मि॒त्रस्य॒ गर्भो॒ वरु॑णस्य॒ नाभिः॑ । सेमान्नो॑ ह॒व्यदा॑तिञ्जुषा॒णो देव॑ रथ॒ प्रति॑ ह॒व्या गृ॑भाय॥ओ३म् उप॑ श्वासय पृथि॒वीमु॒त द्याम्पु॑रु॒त्रा ते॑ मनुताँ॑विष्ठि॑त॒ञ्जग॑त् । स दु॑न्दुभे स॒जूरिन्द्रे॑ण देवैर्दू॒राद्दवी॑यो॒ऽअप॑ सेध॒ शत्रू॑न्॥


तीन बार तिन दिन जप पर्याप्त हैं । 
कार्ड शीट पर प्रिंट करके रखे. घी का दीपक जलावे । 
कठोर ब्रह्मचर्य रखें । 
क्रोध ना करें । 
और खुद नम्र बने रहें । 
मंत्र को अपना काम करने दें । 




Saturday, 18 November 2017

कामबाण सूक्त ( Going in to heart of the women )




ॐ अस्य अर्थवेदस्य कामबाण सूक्तस्य, भृगु ऋषि, मित्रावरुणा, कामबाण देवता: अनुष्टुप छंद:, स्त्री हृदय विध्य हेतवे जप करिष्यामि: ।

मंत्र ( सिर्फ तीन दिन तीन बार जप पर्याप्त हैं )
तीसरे दिन प्रभाव देखें ।

ओ३म् उ॑त्तु॒दस्त्वोत्तु॑दतु॒ मा धृ॑थाः॒ शय॑ने॒ स्वे । इषुः॒ काम॑स्य॒ या भी॒मा तया॑ विध्यामि त्वा हृ॒दि ॥
ओ३म् आ॒धीप॑र्णां॒ काम॑शल्या॒मिषुं॑ संक॒ल्पकु॑ल्मलाम् । तां सुसं॑नतां कृ॒त्वा कामो॑ विध्यतु त्वा हृ॒दि ॥
ओ३म् या प्ली॒हानं॑ शो॒षय॑ति॒ काम॒स्येषुः॒ सुसं॑नता । प्रा॒चीन॑पक्षा॒ व्यो॑षा॒ तया॑ विध्यामि त्वा हृ॒दि ॥
ओ३म् शु॒चा वि॒द्धा व्यो॑षया॒ शुष्का॑स्या॒भि स॑र्प मा । मृ॒दुर्निम॑न्युः॒ केव॑ली प्रियवा॒दिन्यनु॑व्रता ॥
ओ३म् आजा॑मि॒ त्वाज॑न्या॒ परि॑ मा॒तुरथो॑ पि॒तुः । यथा॒ मम॒ क्रता॒वसो॒ मम॑ चि॒त्तमु॒पाय॑सि ॥
ओ३म् व्य॑स्यै मित्रावरुणौ हृ॒दश्चि॒त्तान्य॑स्यतम् । अथै॑नामक्र॒तुं कृ॒त्वा ममै॒व कृ॑णुतं॒ वशे॑ ॥

अस्तु

Thursday, 16 November 2017

आंजन सूक्त (spiritual)

ॐ अस्य अथर्ववेदस्य आञ्जन सूक्तस्य,  भृगुऋषये,   अञ्जन, मन्त्रोक्त देवता:,   अनुष्टुप्, त्रिष्टुप्, एकावसानाविराट्महाबृहती,एकावसाना निचृत महाबृहती छंद:,   अदॄ‌‍‍‌ष्ट दर्शनार्थे जपे विनियोग:

ऋ॒णादृ॒णमि॑व॒ सं न॑य कृ॒त्यां कृ॑त्या॒कृतो॑ गृ॒हम् । चक्षु॑र्मन्त्रस्य दु॒र्हार्दः॑ पृ॒ष्टीरपि॑ शृणाञ्जन ॥ 
ओ३म् यद॒स्मासु॑ दु॒ष्वप्न्यं॒ यद्गोषु॒ यच्च॑ नो गृ॒हे । अना॑मग॒स्तं च॑ दु॒र्हार्दः॑ प्रि॒यः प्रति॑ मुञ्चताम् ॥ 
ओ३म् अ॒पामू॒र्ज ओज॑सो वावृधा॒नम॒ग्नेर्जा॒तमधि॑ जा॒तवे॑दसः चतु॑र्वीरं पर्व॒तीयं॒ यदाञ्ज॑नं॒ दिशः॑ प्रदिशः कर॒दिच्छि॒वास्ते॑ ॥ 
ओ३म् चतु॑र्वीरं बध्यत॒ आञ्ज॑नं ते॒ सर्वा॒ दिशो॒ अभ॑यास्ते भवन्तु । ध्रु॒वस्ति॑ष्ठासि सवि॒तेव॒ चार्य॑ इ॒मा विशो॑ अ॒भि ह॑रन्तु ते ब॒लिम् ॥ 
ओ३म् आक्ष्वैकं॑ म॒णिमेकं॑ क्र्णुष्व स्ना॒ह्येके॒ना पि॒बैक॑मेषाम् । चतु॑र्वीरं नैरृ॒तेभ्य॑श्च॒तुर्भ्यो॒ ग्राह्या॑ ब॒न्धेभ्यः॒ परि॑ पात्व॒स्मान् ॥ 
ओ३म् अ॒ग्निर्मा॒ग्निना॑वतु प्रा॒णाया॑पा॒नायायु॑षे॒ वर्च॑स॒ ओज॑से । तेज॑से स्व॒स्तये॑ सुभू॒तये॒ स्वाहा॑ ॥ 
ओ३म् इन्द्रो॑ मेन्द्रि॒येणा॑वतु प्रा॒णाया॑पा॒नायायु॑षे॒ वर्च॑स॒ ओज॑से । तेज॑से स्व॒स्तये॑ सुभू॒तये॒ स्वाहा॑ ॥ 
ओ३म् सोमो॑ मा॒ सौम्ये॑नावतु प्रा॒णाया॑पा॒नायायु॑षे॒ वर्च॑स॒ ओज॑से । तेज॑से स्व॒स्तये॑ सुभू॒तये॒ स्वाहा॑ ॥ 
ओ३म् भगो॑ म॒ भगे॑नावतु प्रा॒णाया॑पा॒नायायु॑षे॒ वर्च॑स॒ ओज॑से । तेज॑से स्व॒स्तये॑ सुभू॒तये॒ स्वाहा॑ ॥ 
ओ३म् म॒रुतो॑ मा ग॒णैर॑वन्तु प्रा॒णाया॑पा॒नायु॑षे॒ वर्च॑स॒ ओज॑से॒ तेज॑से । स्व॒स्तये॑ सुभू॒तये॒ स्वाहा॑ ॥



अस्तु






Wednesday, 15 November 2017

वृष्टिकर ( Rainmaker)


ॐ अस्य अथर्वेदस्य
वृष्टि सूक्तस्य अथर्वा ऋषि, ( दिशा, वीरूध, मरुद्गण, पर्जन्य, अग्नि, स्तनयित्नु, प्रजापति,
वरुण, मण्डूकसमूह, पितरगण, वात, पर्जन्य,पृथिवी ) देवताः, (विराट् जगती, त्रिष्टुप्, विराट् पुरस्ताद्बृहती, अनुष्टुप्, पथ्यापङ्क्ति, भुरिक् त्रिष्टुप्, पञ्चपदा अनुष्टुपब्गर्भा भुरिक् त्रिष्टुप्, शंकमुति अनुष्टुप,चतुष्पदा भुरिक् उष्णिक्) छन्द:, वृष्टि हेतेवे जप करिष्यामि: ।

मन्त्र


।। ओ३म् स॒मुत्प॑तन्तु प्र॒दिशो॒ नभ॑स्वतीः॒ सम॒भ्राणि॒ वात॑जूतानि यन्तु । म॑हऋष॒भस्य॒
नद॑तो॒ नभ॑स्वतो वा॒श्रा आपः॑ पृथि॒वीं त॑र्पयन्तु ॥ ओ३म् समी॑क्षयन्तु तवि॒षाः पृथ॑ग्जायन्ता॒मोष॑धयो वि॒श्वरू॑पाः ॥ ओ३म् समी॑क्षयस्व॒ गाय॑तो॒सु॒दान॑वो॒ ऽपां रसा॒ ओष॑धीभिः सचन्ताम् । व॒र्षस्य॒ सर्गा॑ महयन्तु॒ भूमिं॒वि॒श्वरू॑पाः ॥ ओ३म् ग॒णास्त्वोप॑ गायन्तु॒ मारु॑ताः पर्जन्य घो॒षिणः॒ पृथ॑क् । नभां॑स्य॒पाम्वेगा॑स॒ह्पृथ॒गुद्वि॑जन्ताम् । व॒र्षस्य॒ सर्गा॑ महयन्तु॒ भूमिं॒ पृथ॑ग्जायन्ताम्वी॒रुधो॑ सर्गा॑ व॒र्षस्य॒ वर्ष॑तो॒ वर्ष॑न्तु पृथि॒वीमनु॑ ॥ ओ३म् उदी॑रयत मरुतः पर्जन्य॒ पय॑सा॒ सम॑ङ्धि । त्वया॑ सृ॒ष्टं ब॑हु॒लमैतु॑ व॒र्षमा॑शारै॒षी समुद्र॒तस्त्वे॒षो अ॒र्को नभ॒ उत्पा॑तयाथ । म॑हऋष॒भस्य॒ नद॑तो॒ नभ॑स्वतो वा॒श्रा आपः॑ पृथि॒वीं त॑र्पयन्तु ॥ ओ३म् अ॒भि क्र॑न्द स्त॒नया॒र्दयो॑द॒धिं भूमिं॑ कृ॒शगु॑रे॒त्वस्त॑म् ॥ ओ३म् सं वो॑ ऽवन्तु सु॒दान॑व॒ उत्सा॑ अजग॒रा उ॒त । अजग॒रा उ॒त । म॒रुद्भिः॒ प्रच्यु॑ता मे॒घाः प्राव॑न्तु पृथि॒वीमनु॑ ॥ ओ३म् म॒रुद्भिः॒ प्रच्यु॑ता मे॒घा वर्ष॑न्तु पृथि॒वीमनु॑ ॥ ओ३म् आशा॑माशां॒ वि द्यो॑ततां॒ वाता॑ वान्तु दि॒शोदि॑शः । म॒रुद्भिः॒ प्रच्यु॑ता मे॒घाः सं य॑न्तु पृथि॒वीमनु॑ ॥ ओ३म् आपो॑ वि॒द्युद॒भ्रं व॒र्षं सं वो॑ ऽवन्तु सु॒दान॑व॒ उत्सा॑ ऽर्वाने॒तेन॑ स्तनयि॒त्नुनेहि॑ ॥ ओ३म् अ॒पो नि॑षि॒ञ्चन्नसु॑रः पि॒ता नः॒ अ॒पाम॒ग्निस्त॒नूभिः॑ संविदा॒नो य ओष॑धीनामधि॒पा ब॒भूव॑ । स नो॑ व॒र्षं व॑नुतां जा॒तवे॑दाः प्रा॒णं प्र॒जाभ्यो॑ अ॒मृतं॑ दि॒वस्परि॑ ॥ ओ३म् प्र॒जाप॑तिः सलि॒लादा स॑मु॒द्रादाप॑ ई॒रय॑न्नुद॒धिम॑र्दयाति । प्र प्या॑यतां॒ वृष्णो॒ अश्व॑स्य॒ रेतो॒ ख॑ण्व॒खा३इ॑ खैम॒खा३इ॒ मध्ये॑ तदुरि । व॒र्षं व॑नुध्वं पितरो म॒रुतां॒ मन॑ इछत ॥ श्वस॑न्तु॒ गर्ग॑रा अ॒पां व॑रु॒णाव॒ नीची॑र॒पः सृ॑ज । वद॑न्तु॒ पृश्नि॑बाहवो म॒ण्डूका॒ इरि॒णानु॑ ॥ ओ३म् सं॑वत्स॒रं श॑शया॒ना ब्रा॑ह्म॒णा व्र॑तचा॒रिणः॑ । वाच॑म्प॒र्जन्य॑जिन्वितां॒ प्र म॒ण्दूका॑ अवादिषुः ॥ ओ३म् उ॑प॒प्रव॑द मण्डूकि व॒र्षं आ व॑द तादुरि । मध्ये॑ ह्र॒दस्य॑ प्लवस्व वि॒गृह्य॑ च॒तुरः॑ प॒दः ॥ ओ३म् आप॑श्चिदस्मै घृ॒तमित्क्ष॑रन्ति॒ यत्र॒ सोमः॒ सद॒मित्तत्र॑ भ॒द्रम् ॥ ओ३म् म॒हान्तं॒ कोश॒मुद॑चा॒भि षि॑ञ्च सविद्यु॒तं भ॑वतु॒ वातु॒ वातः॑ । त॒न्वतां॑ य॒ज्ञं ब॑हु॒धा विसृ॑ष्टा आन॒न्दिनी॒रोष॑धयो भवन्तु ॥ओ३म् प्र न॑भस्व पृथिवि भि॒न्द्धी॑३दं दि॒व्यं नभः॑ । उ॒द्नो दि॒व्यस्य॑ नो धात॒रीशा॑नो॒ वि ष्या॒ दृति॑म् ॥ ओ३म् न घ्रंस्त॑ताप॒ न हि॒मो ज॑घान॒ प्र न॑भतां पृथि॒वी जी॒रदा॑नुः।।

तीन बार नित्य और ५ दिन पर्याप्त हैं ) ( जप पांच दिन तक करने पर अधिकतम १० वे या ११ वे दिन वर्षा
हो जाती हैं । ज्यादा से ज्यादा
१६ दिन इससे ज्यादा नहीं । (अपने अंदर के
विष्णु ( विश्व के अणु या विश्व ) को जाग्रत करे अपने आप पर विश्वास करें ।)
अस्तु l




Sunday, 12 November 2017

वशीकरण

कामिनी मनो अभिमुखीकरण सूक्त

ॐ अस्य अथर्वा मंत्रस्य भृगु ऋषि, मित्रावरुणा, कामबाण देवता, अनुष्टुप् छंद:, कामबाण सूक्त: स्त्री वशीकरणार्थॆ जपे विनियोग: ।

मंत्र
ओ३म् यथे॒दं भूम्या॒ अधि॒ तृणं॒ वातो॑ मथा॒यति॑ । ए॒वा म॑थ्नामि ते॒ मनो॒ यथा॒ मां का॒मिन्यसो॒ यथा॒ मन्नाप॑गा॒ असः॑ ॥ 
ओ३म् सं चेन्नया॑थो अश्विना का॒मिना॒ सं च॒ वक्ष॑थः । सं वां॒ भगा॑सो अग्मत॒ सं चि॒त्तानि॒ समु॑ व्र॒ता ॥ 
ओ३म् यत्सु॑प॒र्णा वि॑व॒क्षवो॑ अनमी॒वा वि॑व॒क्षवः॑ । तत्र॑ मे गछता॒द्धवं॑ श॒ल्य इ॑व॒ कुल्म॑लं॒ यथा॑ ॥ 
ओ३म् यदन्त॑रं॒ तद्बाह्यं॒ यद्बाह्यं॒ तदन्त॑रम् । क॒न्या॑नां वि॒श्वरू॑पाणां॒ मनो॑ गृभायौषधे ॥ 
ओ३म् एयम॑ग॒न्पति॑कामा॒ जनि॑कामो॒ ऽहमाग॑मम् । अश्वः॒ कनि॑क्रद॒द्यथा॒ भगे॑ना॒हं स॒हाग॑मम् ॥ 

Friday, 10 November 2017

स्त्री गुरु यन्त्र और शक्ति गुरु यन्त्र





॥स्त्री गुरु यन्त्र॥

॥मंत्र॥

 ॥ॐ स्त्रीम गुरुस्वारुपाय नमः॥


॥यहा स्त्री का मतलब पत्नी नहि है, और गुरु के उस स्वरुप में भी नहीं हैं जैसे की गुरु को अधिकतम समझा जाता हैं ‍‌‍॥ यहाँ स्त्रीगुरु वामदेवी के रूप में हैं ‍‌। या यह एक भुतिनी या इतर योनी की तरह हैं ।





॥शक्ति गुरु यन्त्र॥

॥ॐ शक्तिम गुरुस्वारुपाय नमः ॥








भु विल्व , व्यवहार सिद्दी यन्त्र, कुबेर यन्त्र ( पूजा कर्म रूपी आजीविका प्राप्ति यन्त्र )





भू विल्व दर्शन यन्त्र


॥ ओउम भू विल्वं दृष्शय दृष्शय भू गह्वरं दृष्शयदृष्शय बहुजन प्रजा दर्शय दर्शय संगती सिद्दाय विसरय विसरय 
प्रसरय प्रसरय नमः॥


व्यवहार सिद्दी यन्त्र

॥ ओउम समस्त व्यवहार प्राप्ताय नमः‌‍ ॥








कुबेर यन्त्र ( पूजा कर्म रूपी आजीविका प्राप्ति यन्त्र )



॥ ॐ कुबेराय साधना स्थली प्राप्ताय ॐ ॥














Thursday, 9 November 2017

यक्ष्मनिवारण सूक्त (Health)



ॐ अस्य इदम अर्थवेदस्य यक्ष्मनिवारण सूक्तस्य, भृग्वङ्गिरा ऋषि, 
सर्वशीर्षमयाद्य देवता, अनुष्टुप्, विराट् अनुष्टुप्,विराट् पथ्या बृहती, 
पथ्यापङ्क्त छंदम, यक्ष्मनिवारणर्थे जपे विनियोग: 

जप संख्या कम से कम  ११ बार प्रतिदिन 

मन्त्र

शीर्ष॒क्तिं शी॑र्षाम॒यं क॑र्णशू॒लं वि॑लोहि॒तम् । सर्वं॑ शीर्ष॒न्यं॑ ते॒ रोगं॑ ब॒हिर्निर्म॑न्त्रयामहे ॥ 
ओ३म् कर्णा॑भ्यां ते॒ कङ्कू॑षेभ्यः कर्णशू॒लं वि॒सल्प॑कम् । सर्वं॑ शीर्ष॒न्यं॑ ते॒ रोगं॑ ब॒हिर्निर्म॑न्त्रयामहे ॥ 
ओ३म् यस्य॑ हे॒तोः प्र॒च्यव॑ते॒ यक्ष्मः॑ कर्ण॒तो आ॑स्य॒तः । सर्वं॑ शीर्ष॒न्यं॑ ते॒ रोगं॑ ब॒हिर्निर्म॑न्त्रयामहे ॥ 
ओ३म् यः कृ॒णोति॑ प्र॒मोत॑म॒न्धं कृ॒णोति॒ पूरु॑षम् । सर्वं॑ शीर्ष॒न्यं॑ ते॒ रोगं॑ ब॒हिर्निर्म॑न्त्रयामहे ॥ 
ओ३म् अ॑ङ्गभे॒दम॑ङ्गज्व॒रम्वि॑श्वा॒ङ्ग्यं॑ वि॒सल्प॑कम् । सर्वं॑ शीर्ष॒न्यं॑ ते॒ रोगं॑ ब॒हिर्निर्म॑न्त्रयामहे ॥ 
ओ३म् यस्य॑ भी॒मः प्र॑तीका॒श उ॑द्वे॒पय॑ति॒ पूरु॑षम् । त॒क्मानं॑ वि॒श्वशा॑रदं ब॒हिर्निर्म॑न्त्रयामहे ॥ 
ओ३म् य ऊ॒रू अ॑नु॒सर्प॒त्यथो॒ एति॑ ग॒वीनि॑के । यक्ष्मं॑ ते अ॒न्तरङ्गे॑भ्यो ब॒हिर्निर्म॑न्त्रयामहे ॥ 
ओ३म् यदि॒ कामा॑दपका॒माद्धृद॑या॒ज्जाय॑ते॒ परि॑ । हृ॒दो ब॒लास॒मङ्गे॑भ्यो ब॒हिर्निर्म॑न्त्रयामहे ॥ 
ओ३म् ह॑रि॒माणं॑ ते॒ अङ्गे॑भ्यो॒ ऽप्वाम॑न्त॒रोदरा॑त् । य॑क्ष्मो॒धाम॒न्तरा॒त्मनो॑ ब॒हिर्निर्म॑न्त्रयामहे ॥ 
ओ३म् आसो॑ ब॒लासो॒ भव॑तु॒ मूत्रं॑ भवत्वा॒मय॑त् । यक्ष्मा॑णां॒ सर्वे॑षां वि॒षं निर॑वोचम॒हं त्वत् ॥  
ओ३म् ब॒हिर्बिलं॒ निर्द्र॑वतु॒ काहा॑बाहं॒ तवो॒दरा॑त् । यक्ष्मा॑णां॒ सर्वे॑षां वि॒षं निर॑वोचम॒हं त्वत् ॥ 
ओ३म् उ॒दरा॑त्ते क्लो॒म्नो नाभ्या॒ हृद॑या॒दधि॑ । यक्ष्मा॑णां॒ सर्वे॑षां वि॒षं निर॑वोचम॒हं त्वत् ॥ 
ओ३म् याः सी॒मानं॑ विरु॒जन्ति॑ मू॒र्धानं॒ प्रत्य॑र्ष॒नीः । अहिं॑सन्तीरनाम॒या निर्द्र॑वन्तु ब॒हिर्बिल॑म् ॥ 
ओ३म् या हृद॑यमुप॒र्षन्त्य॑नुत॒न्वन्ति॒ कीक॑साः । अहिं॑सन्तीरनाम॒या निर्द्र॑वन्तु ब॒हिर्बिल॑म् ॥ 
ओ३म् याः पा॒र्श्वे उ॑प॒र्षन्त्य॑नु॒निक्ष॑न्ति पृ॒ष्टीः । अहिं॑सन्तीरनाम॒या निर्द्र॑वन्तु ब॒हिर्बिल॑म् ॥ 
ओ३म् यास्ति॒रश्चीः॑ उप॒र्षन्त्य॑र्ष॒णीर्व॒क्षणा॑सु ते । अहिं॑सन्तीरनाम॒या निर्द्र॑वन्तु ब॒हिर्बिल॑म् ॥ 
ओ३म् या गुदा॑ अनु॒सर्प॑न्त्या॒न्त्राणि॑ मो॒हय॑न्ति च । अहिं॑सन्तीरनाम॒या निर्द्र॑वन्तु ब॒हिर्बिल॑म् ॥ 
ओ३म् या म॒ज्ज्ञो नि॒र्धय॑न्ति॒ परूं॑षि विरु॒जन्ति॑ च । अहिं॑सन्तीरनाम॒या निर्द्र॑वन्तु ब॒हिर्बिल॑म् ॥ 
ओ३म् ये अङ्गा॑नि म॒दय॑न्ति॒ यक्ष्मा॑सो रोप॒णास्तव॑ । यक्ष्मा॑णां॒ सर्वे॑षां वि॒षं निर॑वोचम॒हं त्वत् ॥ 
ओ३म् वि॑स॒ल्पस्य॑ विद्र॒धस्य॑ वातीका॒रस्य॑ वाल॒जेः । यक्ष्मा॑णां॒ सर्वे॑षां वि॒षं निर॑वोचम॒हं त्वत् ॥ 
ओ३म् पादा॑भ्यां ते॒ जानु॑भ्यां॒ श्रोणि॑भ्यां॒ परि॒ भंस॑सः । अनू॑कादर्ष॒णीरु॒ष्णिहा॑भ्यः शी॒र्ष्णो रोग॑मनीनशम् ॥ 
ओ३म् सं ते॑ शी॒र्ष्णः क॒पाला॑नि॒ हृद॑यस्य च॒ यो वि॒धुः । उ॒द्यन्ना॑दित्य र॒श्मिभिः॑ शी॒र्ष्णो रोग॑मनीनशो ऽङ्गभे॒दम॑शीशमः ॥  

1 मिठाई , फल से ना लेवे 
२ शाम को ना सोवे 
३ ब्रह्मचर्य का कठोरता से पालन करें 
४ कम से कम ११ बार कुम्भक करें 
५ चाय  ले सकते हैं दूध ना लेवें 

सिर्फ तीसरे दिन प्रभाव देखें