शाबर काली मंत्र-1
“डण्डभुज-डण्ड, प्रचण्ड नो खण्ड। प्रगट
देवि, तुहि झुण्डन के झुण्ड। खगर दिखा
खप्पर
लियां, खड़ी कालका। तागड़दे मस्तङ्ग,
तिलक
मागरदे मस्तङ्ग। चोला जरी
का, फागड़ दीफू, गले फुल-माल, जय जय जयन्त। जय आदि-शक्ति। जय कालका
खपर-धनी।
जय मचकुट छन्दनी देव। जय-जय महिरा, जय मरदिनी। जय-जय
चुण्ड-मुण्ड
भण्डासुर-खण्डनी, जय रक्त-बीज बिडाल-बिहण्डनी। जय निशुम्भ को दलनी, जय शिव
राजेश्वरी।
अमृत-यज्ञ धागी-धृट, दृवड़ दृवड़नी। बड़ रवि
डर-डरनी ॐ ॐ ॐ।।”
विधि
- नवरात्रों में प्रतिपदा से नवमी तक घृत का दीपक प्रज्वलित रखते हुए
अगर-बत्ती
जलाकर प्रातः-सायं उक्त मन्त्र का ४०-४० जप करे। कम या ज्यादा न
करे।
जगदम्बा के दर्शन होते हैं।
शाबर काली मंत्र-2
काली काली महा-काली, इन्द्र की बेटी, ब्रह्मा की साली। पीती भर भर रक्त प्याली, उड़ बैठी पीपल की डाली। दोनों हाथ बजाए ताली। जहाँ जाए वज्र की ताली, वहाँ ना आए दुश्मन हाली। दुहाई कामरो कामाख्या नैना योगिनी की, ईश्वर महादेव गोरा पार्वती की, दुहाई वीर मसान की।।
शाबर काली मंत्र-3
काली काली महा-काली, इन्द्र की बेटी, ब्रह्मा की साली। पीती भर भर रक्त प्याली, उड़ बैठी पीपल की डाली। दोनों हाथ बजाए ताली। भूत वेताल दोउ
को मारे, जहाँ जाए वज्र
की ताली, । शबद साँचा पिंड कांचा, फुरो मन्त्र ईश्वरो वाचा ।