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Thursday, 24 May 2018

शरभनाथ मंत्र



 ॥ कालकृत शरभमंत्रराज ॥

॥ ॐ आंं ह्रीं क्रों एहि एहि शरभ-शाल्वाय स्फुर स्फुर पक्षिराजाय प्रस्फुर प्रस्फुर् शत्रुणा शोणित पिव पिव ओं ऐंं ग्लौं ग्लौं ग्लौं ॐ ह्रीं ह्रीं ह्रीं ओंं ऐंं ग्लौं ग्लौं ग्लौं ग्लौं ग्लौं अावेशय अावेशय आगच्छ आगच्छ स्थिरोभव स्थिरोभव रोगान्नाशय नाशय कृत्रिमान् खाहि खाहि। चटकान् खादय खादय ॐ ह्रीं क्षीं क्रौं (अमुकस्य) रोगान् सुशीघ्रेेण छेदय छेदय खेदय खेदय खड्न छेदय छेदय आ पाशेन वन्धय बन्धय ह्रीं वंं आरोग्यं कुरू कुरू रंं खें शत्रुणां रक्त पिव पिव शीघ्र शीघ्र कृत्रिमान् खादय खादय ॐ ह्रीं क्रौं खेंं खां खं फट् प्राणग्रहासि प्राणग्रहासि हुँ। फट् सर्वशत्रुसंहारणाय शरभ-शाल्वाय पक्षिराजाय हुं फट् स्वाहा–ओं नमो भगवते अष्टपादाय सहस्रबाहवे द्विशीषय द्विनेत्राय द्विपक्षीय रुद्ररूपाय रौद्रमृगविहङ्ग-वेषधारिणे योगनृसिंह-वेष-संहारणाय उद्दण्डखण्डनाय ज्वाला-नृसिंह हताय-शमनाय लक्ष्मी नृृसिंह -मथनकराय जगदनृृसिंह सुदर्शनाय अनेक विघ्नरूपछेदनाय अखिलदेवता वन्दनाय निखिलदेवता परिपालनाय क्षयरोगादि सकल-रोग-निवारणाय ह्रीं ह्रीं महाचित्ररथादि गन्धर्व प्रतिष्ठिताय अन्तरिक्षग्रह आकाशग्रह वसुन्धराग्रह क्षिप्रप्रग्रह मंत्रग्रह। यक्षग्रह कामिनीग्रह मोहिनीग्रहोच्चाटनाय सकल-ब्रह्मराक्षस-वेताल कूष्माण्डादि महाप्रबलग्रहोच्चाटनाय सकलदुष्ट ग्रहनिवारणाय महावीरभद्राय परमंत्र-परयंत्र-परतंत्रादिकाना मूलछेदनाय शिष्यपरिपालनाय महापशुरूपिणे शरभ-शाल्वाथ पक्षिराजाय हुं फट् स्वाहा ॥